मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा वोटर वाले इंदौर में चुनाव आयोग को गर्मी के साथ वोटर्स की ठंडक से भी जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम के अचानक हटने के बाद मतदान का दिन एक तरफा होने जैसा लग रहा है। 40 से अधिक उम्र के लोग वोट देने के इंट्रेस्टेड नहीं लग रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता।
खजुराहो में जो हुआ, उसे देखते हुए वहां एकतरफा लड़ाई के कारण मतदान में 11.4% की गिरावट आई। यह अब तक की सबसे अधिक गिरावट है। चुनाव आयोग को इंदौर में संख्या बढ़ाने के लिए एक कठिन लड़ाई लड़नी होगी। इंदौर में बम और सात अन्य उम्मीदवारों के नाम वापस लेने के बाद यहां 14 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं। यहां अब भाजपा के मौजूदा सांसद शंकर लालवानी, बसपा से एक और 12 निर्दलीय या छिटपुट राजनीतिक संगठनों के सदस्य बचे हैं। कुल मिलाकर लालवानी के सामने कोई वास्तविक चुनौती नहीं है।
क्या बोल रहे वोटर्स?
पक्षी विज्ञानी अजय गडिकर ने नोटा वोटों में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हुए कहा कि ‘इंदौर में हमेशा भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय लड़ाई रही है। इस बार स्थिति के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। लोगों के लिए मतदान करना कठिन होगा।’
खजुराहो में भी ऐसा ही माहौल देखने को मिला था, क्योंकि सपा उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन जांच के दौरान खारिज कर दिया गया था। उन्होंने डॉक्युमेंट्स पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, जिससे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को राहत मिली। कांग्रेस, जिसने इंडिया ब्लॉक डील के तहत यह सीट एसपी के लिए छोड़ दी थी, फॉरवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार का समर्थन कर रही है, लेकिन वोटर्स को लोकतंत्र के त्योहार से वंचित होने का अहसास था। यहां मतदान प्रतिशत 68.3% से गिरकर 56.9% हो गया।