एक किलोमीटर के इलाके में लगते हैं टावर, कोई छत पर लैपटॉप चलाता है तो किसी को चलती कार में फोन पर बात करनी होती है

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देश में 5जी सेवा का ट्रायल हो रहा है। क्या आप जानते हैं कि ट्रायल कैसे होता है? कहां होता है…देश में चल रहे 5जी ट्रायल से जुड़े टेलीकॉम कंपनियाें के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर भास्कर से जानकारी साझा की। आइए जानते हैं, 5जी ट्रायल से जुड़ी जानकारियां जो अब तक कंपनियों तक सीमित थी।

5जी ट्रायल दरअसल फिल्म की शूटिंग जैसे होता है। बस अंतर इतना है कि फिल्म शूटिंग का दायरा कुछ मीटर होता है, जबकि 5जी ट्रायल का आधे किमी से एक किमी का। कंपनी ट्रायल के लिए आधे से एक किमी रेडियस का इलाका चिन्हित करती है। वहां अस्थायी टॉवर से 5जी सेवा देते हैं, जिसके लिए “काऊ’ (सेलुलर ऑन व्हील) का प्रयाेग होता है।

कड़ी परीक्षा: सर्दी-गर्मी-बारिश हर मौसम में परखेंगे नेटवर्क की गुणवत्ता

सड़क से लिफ्ट तक इस्तेमाल

काऊ लगाने के बाद इलाके में वास्तविक दुनिया से हालात बनाते हैं। वॉलंटियर्स के पास 5जी सिम लगे फोन होते हैं। दरअसल, कंपनियां ट्रायल के दौरान यह देखना चाहती हैं कि 5जी सेवा का जो भी संभावित इस्तेमाल होने वाला है, उसमें परेशानी न आए।

नेटवर्क मिलने के बाद कोई मोबाइल पर बात करते हुए चलता है, तो कोई एक जगह खड़े रह कर फोन इस्तेमाल करता है। कोई कार में घूमते हुए फोन का इस्तेमाल करता है। काेई लैपटाॅप चलाता है, तो कोई डेस्कटॉप। कोई लिफ्ट में फोन का इस्तेमाल करता है तो कोई छत पर।

आखिर क्यों बनाया जाता है ऐसा माहौल
एक इलाके में करीब सौ डिवाइस तैनात होती हैं। देश में कंपनियां छह महीने ट्रायल करेंगी। इस दौरान गर्मी, ठंड, बरसात हर मौसम में गुणवत्ता परखी जाएगी। शहर, गांव, कस्बे हर परिवेश में ट्रायल होगा। जब हर परिवेश, हर मौसम में सुचारू 5जी सेवा के प्रमाण मिल जाएंगे, तभी कॉमर्शियल लॉन्चिंग की अनुमति मिलेगी।

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