अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 नवंबर दिन गुरुवार सुबह 6:49 से होकर 12 नवंबर दिन शुक्रवार सुबह 5:50 तक रहेगा। हिंदू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान है और गाय को मां का दर्जा भी प्राप्त है। गाय की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण का अति प्रिय नाम गोविंद पड़ा। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गाय, गोप ,गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य सतीश सोनी के अनुसार गोपाष्टमी का उल्लेख निर्णया मृत एवं कूर्मपुराण तथा भविष्य पुराण में मिलता है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष अष्टमी 11 नवंबर गुरुवार को परंपरागत ढंग से गोपाष्टमी के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन गाय ,गुरु और गोविंद की पूजा करने से सुख समृद्धि की वृद्धि होगी। साथ ही जन्मपत्री में पितृदोष तथा पीड़ित ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलेगी। दीपावली के बाद गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं में यह पर्व गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है। श्रीकृष्ण ने गौ चर लीला इसी दिन से प्रारंभ की थी। श्री कृष्ण ने जब माता यशोदा से गो सेवा की इच्छा व्यक्त की तो माता यशोदा ने उन्हें अनुमति नहीं दी, लेकिन बालकृष्ण के हठ के कारण उन्होंने शांडिल ऋषि से मुहूर्त निकलवाया। कार्तिक शुक्ल की अष्टमी तिथि का मुहूर्त निकला और तभी से गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा। वैसे तो हिंदू परिवारों में हर रोज ही पहली रोटी गाय को खिलाने की परंपरा है, लेकिन गोपाष्टमी को गौ पूजन का विशेष महत्व होता है। गोपाष्टमी पर गुरु, गोविंद और गाय की पूजा के साथ गौरक्षक ग्वाला को भी तिलक लगाकर मीठा खिलाया जाता है। वहीं जो बहनें भाई दूज के पर्व पर अपने भाई को किसी कारण से तिलक नहीं कर पाती तो वह इस दिन भाई को तिलक कर सकती हैं।
कैसे करें गोपाष्टमी पर पूजनः इस दिन गाय ,बैल और बछड़ों को स्नान कराकर उन्हें सीप से बने आभूषण पहनाए जाते हैं। उनके सीगो को रंगों से रंगा जाता है। हरा चारा और गुड़ खिलाकर आरती करते हुए उनके पैर छूए जाते हैं। फिर गो माता की परिक्रमा की जाती है। माना जाता है कि गाय में 33 कोटि देवताओं का वास होता है। इसलिए गो पूजा और सेवा से समस्त भगवान प्रसन्न होते हैं। गाय के उपासक को धन धान्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और परिवार में लक्ष्मी का वास होता है।