(उमेश बागरेचा)
नगरपालिका परिषद बालाघाट में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के निर्वाचन के लिए अब मात्र 3 दिन शेष रह गए हैं। यहां कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, वहीं दूसरी ओर भाजपा को पिछले 10 वर्षो से चली आ रही सत्ता को बचाए रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है, जिसके चलते उन्हें अपने पार्षदों की बाड़ेबंदी करनी पड़ रही है। जनचर्चा है कि जब बहुमत के लिए आवश्यक पार्षदों की संख्या है, तो फिर बाड़ेबंदी की भाजपा को आवश्यकता क्यों पड़ गई, क्या अपने ही पार्षदों पर से उनका विश्वास डगमगा गया है, अर्थात क्या कांग्रेस की संस्कृति से वे अभिभूत हो गए हंै, तभी तो उन्हें बंद कमरे में ए सी की हवा खिलवानी पड़ रही है, और हो भी क्यों न क्योंकि कांग्रेस भी तो भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में जरूर होगी। सेंध लगेगी ही कहना मुश्किल है, लेकिन संभावनाएं खुली हुई है। वह इसलिए कि भाजपा में अध्यक्ष पद के लिए वर्तमान में 5 दावेदार तैयार हो गए हैं अब पांचों को तो अध्यक्ष बनाया नहीं जा सकता 5 में से कोई एक ही अध्यक्ष बनेगा, तो अब शेष बचे 4 में कोई तो एकाध ऐसा हो सकता है जो कांग्रेस संस्कृति से कुछ हासिल कर ले। भाजपा को शायद यही डर सता रहा है, इसलिए सभी की बाड़ेबंदी कर दी गई है। जिला पंचायत खोने के बाद अब भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि नगरपालिका हाथ से नहीं फिसले क्योंकि यदि नगरपालिका भी हाथ से निकल जायेगी तो 2023 में होने जा रहे विधानसभा के चुनाव में भी इसका असर पड़ेगा जो भाजपा के लिए कहीं से भी अच्छा नहीं होगा, इसलिए भाऊ शायद ज्यादा चिंतित है। एक बात और भी भाऊ के लिए चिंतित करने वाली हो सकती है कि यदि भाजपा ने उनकी पसंद का प्रत्याशी नहीं दिया और जो नाम उन्हें नहीं पसंद, वही नाम सामने आ गया तब भी चिंता तो लगी ही रहेगी। हालांकि अध्यक्ष पद के दावेदारों को छोड़ दें तो अधिकांश पार्षद भाऊ की पसंद के दावेदार को प्रत्याशी के रूप में पसंद करेंगे, इसी विश्वास के साथ भाऊ ने बाड़ेबंदी कराई है। लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षा बहुत बुरी चीज होती है, कब कौन बागी होकर विपक्षी पार्टी से हाथ मिला ले कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल ही में जो दृश्य जिला पंचायत में हमे देखने मिला, उस दृश्य की पुनरावृति की संभावना से यहां इनकार नहीं किया जा सकता, इसमें अंतर सिर्फ इतना होगा कि वहां अभिनेता के रोल में कांग्रेस के बंदे थे यहां भाजपा के होंगे। लेकिन लगता नहीं कि ऐसा होगा क्योंकि भाजपा की डोर मजबूत होती है। लेकिन कांग्रेस, भाजपा को वॉकओवर भी तो नहीं दे सकती, प्रयास तो करेगी कि कुछ जोड़-तोड़ की गुंजाइश निकल आए, क्योंकि भाजपा ने भी तो जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जोड़-तोड़ का पुरजोर असफल प्रयास किया था, मगर यहां कांग्रेस में थोड़ा उल्टा है मतलब पुरजोर प्रयास नहीं है। वहां तो भाजपा के पास संगठन भी था सरकार भी थी, यहां तो सरकार भी नहीं है हां थका-हारा संगठन जरूर है जो अपंग सा पड़ा है, मगर फिर भी चूंकि प्रत्याशी तो मैदान में कांग्रेस को उतारना है इसलिए आज स्थानीय एक होटल में किरनापुर विधायक एवं विधान सभा की पूर्व उपाध्यक्ष सुश्री हीना कावरे ने कांग्रेस के सभी 11 पार्षदों के साथ मिलकर आगे की कुछ रणनीति तय की है, इस रणनीति के संबंध में कुछ ज्ञात नहीं हो सका है। कांग्रेस द्वारा अध्यक्ष पद के लिए भी अभी तक किसी नाम को आगे नहीं किया गया है, जिससे माना जा रहा है कि भाजपा द्वारा प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही कांग्रेस अपने पत्ते दिखाएगी। तब तक हवा में हम गोते ही लगाते रहेंगे।