शहडोल संभाग में दगना (लोहे की सलाखों से दागने) की प्रथा को रोकने के लिए निषेधाज्ञा (पाबंदी) लागू है इसके बाद भी हजारों बच्चे अब तक इस कुप्रथा का शिकार हो चुके हैं। आदिवासी अंचलों में अंधविश्वास का कहर कुछ इस कदर हावी है कि बीमार होते ही मासूमों को अस्पताल ले जाने के बजाय पहले गर्म सलाखों से दाग दिया जाता है। जब उसकी हालत बिगड़ने लगती है तब उसे अस्पताल लाया जाता है। बुधवार को भी गोहपारू में ऐसा ही एक मामला आया जिसमें दो माह के बच्चे को इसलिए दहकती सलाख से दाग दिया गया क्योंकि उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। यह मामला भी मौत के मुंह में समा चुके उन बच्चों जैसा ही है जिनकी मौत को लेकर जिला अस्पताल सुर्खियों में है।
शहडोल जिले के गोहपारू जनपद निवासी आदिवासी दंपती का यह नवजात शिशु निमोनिया से पीड़ित था। उसे गर्म सलाख से दाग दिया। इसके बाद हालत तो सुधारना नहीं थी, और बिगड़ी तो उसे गोहपारू अस्पताल लाया गया। गोहपारू से उसे शहडोल जिला अस्पताल भेजा गया। डॉक्टरों का कहना है कि जब उसे जिला अस्पताल लाया गया था तो उसकी हालत बेहद नाजुक थी लेकिन अब स्थिति में काफी सुधार है।