पेड़ लगाकर सालाना कमा सकते हैं 50 लाख, ऐसे शुरू करें खुद का बिजनेस

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नीलगिरी के तेल के बारे में अधिकांश लोग जानते हैं और कई बार घरेलू औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है। नीलगिरी के पेड़ (Eucalyptus Tree) को देश में कई स्थान पर सफेदे का पेड़ भी कहा जाता है,। Eucalyptus का ज्यादातर इस्तेमाल इसके औषधीय गुणों के कारण होता है और आजकल इसे बड़े पैमाने पर तैयार कर कमाई भी की जाने लगी है। यदि आप भी Eucalyptus के पेड़ से कमाई करना चाहते हैं तो ऐसे लोगों के लिए गोंडा जिले के वजीरगंज इलाके के रहने वाले अरुण पांडेय एक मिसाल बन चुके हैं, जिन्होंने Eucalyptus के पेड़ लगाकर अपना खुद का बिजनेस शुरू किया है और नीलगिरी के तेल से सालाना 50 लाख रुपए कमा रहे हैं। Eucalyptus के पेड़ के तेल के साथ-साथ शहद उत्पादन भी किया जा सकता है।

यूकेलिप्टस सोखता है बहुत ज्यादा पानी

यूकेलिप्टस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल भी बहुत से कामों में लिया जाता है। इस पेड़ को लगाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि आपके पास पानी की समुचित व्यवस्था हो क्योंकि यह पेड़ बहुत ज्यादा पानी सोखता है। यही कारण है कि इस पेड़ को नदी-नहर के किनारे या दलदली क्षेत्र में लगाया जाता है। Eucalyptus की पत्तियों से तेल भी निकाला जाता है। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि इसके फूल से शहद भी बनाया जाता है, जो बालों और त्वचा के लिए फायदेमंद माना जाता है।

अरुण कुमार ने ऐसे शुरू किया Eucalyptus का बिजनेस

वजीरगंज के अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं और आईएएस की तैयारी कर रहे हैं। पढ़ाई के साथ उन्होंने यूकेलिप्टस के पत्तों से तेल और फूलों से शहद बनाने के कारोबार में भी किस्मत आजमाई। इस बिजनेस से अभी तक 50 लाख रुपए कमा चुके हैं और कई लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं। अरुण बताते हैं कि उन्होंने 2018 से इस कारोबार की शुरुआत की थी और अभी तक 5000 पौधे लगा चुके हैं।

CIMAP से लिया तेल निकालने का प्रशिक्षण

अरुण पांडे बताते हैं कि इस व्यवसाय को शुरू करने से पहले उन्होंने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (CIMAP ) में इसका प्रशिक्षण लिया है। इसके तेल को यूकेलिप्टल नाम दिया गया है। पांडे ने बताया कि पर्यावरण के हिसाब से इस पौधे को खराब कहना बिल्कुल गलत है। यूकेलिप्टस का पेड़ पानी में उगता है लेकिन हाइब्रिड यूकेलिप्टस ज्यादा पानी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह पेड़ यदि ज्यादा समय पानी में रहता है तो सूखने का खतरा बढ़ जाता है।

अरुण पांडे एक साल में 50 से 60 क्विंटल तेल निकालते हैं, जिसकी आपूर्ति पूरे देश में की जाती है। इस धंधे से उन्हें अच्छा खासा फायदा हो रहा है। वहीं दूसरी ओर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (CIMAP ) के वैज्ञानिक राजेश वर्मा का कहना है कि नीलगिरी की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं, जिनका इस्तेमाल शहद बनाने में किया जाता है।

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