उमेश बागरेचा
बालाघाट (पद्मेश न्यूज)। गत ६ सितम्बर को घटित कथित पुलिस नक्सली मुठभेड़ जिसमें छत्तीसगढ़ निवासी एक आदिवासी की गोली लगने से मौत हो गयी कि, सीआईडी जांच प्रारंभ हो गई है। जांच के लिये नियुक्त इन्वेस्टिगेशन अधिकारी आज बालाघाट पहुंच चुके। इस बीच आदिवासी समाज सीआईडी जांच का विरोध कर सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। उधर छत्तीसगढ़ से भी जो खबरे आ रही है वह म.प्र. पुलिस के लिये ठीक नहीं कही जा सकती। छत्तीसगढ़ के समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार मृतक झामसिंह धुर्वे के गृह जिले कबीरधाम के कलेक्टर ने जो जांच रिपोर्ट छत्तीसगढ़ सरकार को सौंपी है, उसके अनुसार झामसिंह को बालाघाट पुलिस ने छत्तीसगढ़ की सीमा में घुसकर गोली मारी है, वनविभाग चिल्पी के नजरी नक्शा के मुताबिक घटनास्थल चिल्पी के थाना में ग्राम माराडबरा के वनभूमि पीएफ नं. १५८ से लगा हुआ है, प्रत्यक्षदर्शियों के बयान में भी इन तथ्यों की पुष्टी हुई है, इतना ही नहीं बल्कि दूसरे दिन घटनास्थल पर खून के दाग मिटाने की कोशिश के निशान पाए गए। इसके विपरित बालाघाट पुलिस का बयान कि घटना जिले के गढ़ी थानातंर्गत ग्राम बसपहरा के जंगल की है, जहां कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ होना बताया जा रहा है।
अभी तक की कही गई बातों से यह तो स्पष्ट नजर आ रहा है कि मृतक झामसिंह का कोई भी नक्सली कनेक्शन नहीं है, किन्तु ६ सितम्बर की घटना के ठीक १० दिन बाद अचानक बालाघाट पुलिस की तरफ से पता चलता है कि उसने एक इनामी ‘बादलÓ नामक नक्सली को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी में भी काफी कुछ चीजे बदलती नजर आई, तदनुसार न्यूज चैनलो में सबसे पहले ब्रेकिंग न्यूज चली कि गढ़ी थानान्तर्गत बाधाटोला (समनापुर) में पुलिस-नक्सली मुठभेड हुई है जिसमें दो नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, जिसमें से एक नक्सली पर ५० लाख का ईनाम है। इसके कुछ समय बाद खबर आती है पुलिस को मुखबीर की सूचना से पता लगा कि ग्राम में कुछ नक्सली आए हुए, और पुलिस को दो व्यक्ति संदिग्ध नजर आए, जब पुलिस ने उनकी घेराबंदी की तो वे भागने लगे और दोनों समीप के तालाब में कूद गये, जहां एक नक्सली जिसका नाम बादल है को पकड़ लिया गया, किन्तु दूसरा नक्सली भागने में सफल हो गया। रात्रि में पुलिस ने प्रेस काफ्रेंस लेकर इसकी पुष्टि की और ईनाम की राशि ५० लाख से १२ लाख बता दी जाती है और यह राशि दूसरे दिन अर्थात आज ८ लाख पर आकर टिक जाती है।
दस दिन के अंदर ही इस दूसरी मुठभेड़ की घटना के बाद बालाघाट के मिडिया हल्के में सवाल उठने लगे कि कहीं इस घटना से ६ सितम्बर की घटना को लिंक करके मृतक झामसिंह को बादल का सहयोगी बताने कीं कोशिश तो नहीं होगी। बस फिर क्या था बालाघाट पुलिस अधीक्षक ने एक बार फिर पे्रस वार्ता कर ली जिसमे बकायदा उन्हें आज कहना पड़ा कि अभी तक झामसिंह का कहीं कोई नक्सली कनेक्शन नहीं पाया गया है, वह छत्तीसगढ़ के गांव का ग्रामीण है।
इन बातों के पश्चात अब यह तो निश्चित हो गया कि मृतक झामसिंह नक्सली नहीं था। अब जांच का विषय यह रह जाता है कि उसकी मौत कैसे हुई, क्या पुलिस ने उसे मारा या जैसा पुलिस कह रही है कि कथित मुठभेड के दौरान नक्सलियों की गोली लगने से उसकी मौत हुई।
किन्तु फिर प्रश्र वही है कि जांच कौन करेगा? कैसी करेगा? सीआईडी जांच पर आदिवासी नेताओं को विश्वास नहीं है। मगर जांच तो सीआईडी भी कर रही है, मजिस्ट्रीयल हो रही है, मानव अधिकार आयोग भी करेगा औेर ऐसी जांचे तो पूर्व मे भी होती रही है, जिनके परिणाम सालो बाद आज भी प्रतिक्षित है। इसकी भी हम प्रतीक्षा करेंगे।