बालाघाट : विभागीय लापरवाही पड़ ना जाए भारी, अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर आयोजित नहीं किए गए कोई जागरूकता कार्यक्रम

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बालाघाट (पद्मेश न्यूज)। हम टाइगर स्टेट, टाइगर जिले का दम भरते नहीं थकते, प्रकृति ने हमें यह सौभाग्य से नवाजा जरूर है पर यह दर्जा सालों साल कायम रहे इसके लिए कोई सार्थक प्रयास होते नहीं दिख रहा है। 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में घोषित है यह सभी को मालूम है लेकिन ऐसे दिवस पर कोई जागरूकता कार्यक्रम भी विभाग द्वारा आयोजित नहीं किया जाना विभागीय लापरवाही को प्रदर्शित कर रहा है।


कई कमियां होने के बाद भी बालाघाट जिला बाघों की संख्या के मामले में अग्रणी
बाघों का शिकार और उस पर सुस्त तरीके की बेनतीजा जांच, बाघ बाहुल्य क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई का टारगेट, बाघो की मौजूदगी के बावजूद संरक्षित क्षेत्र घोषित न करना, टाइगर सेल की बैठक ना करना इस प्रकार की काफी कमियां होने के बावजूद भी बालाघाट जिला बाघों की संख्या के मामले में पूरे राष्ट्र में अग्रणी है यह जिले के लिए निश्चित ही गौरव की बात है। इस गौरव को बनाए रखने के लिए विभागीय अधिकारियों के साथ थी जनप्रतिनिधियों और जागरूक लोगों को भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।


नहीं आयोजित किए गए कोई कार्यक्रम
अंतरष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर पूर्व में वन विभाग द्वारा कुछ ना कुछ जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे लेकिन इस वर्ष विभाग की ओर से कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किए गए। जबकि यह जिला अच्छे वन और बाघों की संख्या अधिक होने के लिए तथा टाइगर जिला होने के लिए जाना जाता है। बाबू का शिकार किए जाने के मामले में सामने आते रहते हैं इसके बावजूद भी वन विभाग के अधिकारियों द्वारा इसको रोकने की दिशा में कोई बड़े प्लान तैयार नहीं किए गए है।


इच्छाशक्ति का है अभाव – अभय कोचर
वन्यप्रेमी एवं पीपुल्स फॉर एनिमल के सदस्य अभय कोचर ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से देखने में आ रहा है शिकार में आधुनिक तरीकों का प्रयोग जिस तरीके से हो रहा है विभाग को उससे अधिक आधुनिक होने की जरूरत है लेकिन वह दिखाई नहीं देता। डीएफओ जैसे अधिकारियों का समय अधिकतर फाइलों में निकल जाता है जबकि उन्हें फील्ड में सतत निगरानी करने की आवश्यकता है बालाघाट में कई ऐसी जगह है जिसे संरक्षित क्षेत्र बना सकते हैं जो संसाधन यहां हैं उससे अच्छा पर्यटक जिला बना सकते हैं इसके लिए इच्छाशक्ति होना चाहिए। बालाघाट जिले में अधिक बाघ होने के बावजूद भी वर्ष 1972 के बाद यह कहे कि पिछले 50 सालों में कोई अन्य संरक्षित क्षेत्र बाघो के लिए नहीं बनाया गया। बालाघाट आने वाले पर्यटको की इच्छा होती है बाघ देखें। बालाघाट जिले में लौंगूर, परसवाड़ा का जलगांव छेत्र और लालबर्रा का सोनेवानी ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें संरक्षित क्षेत्र बनाया जा सकता है बस राजनीतिक इच्छाशक्ति होना चाहिए।


वर्तमान में करीब 30 बाघों की मौजूदगी देखी जा रही – सीसीएफ
इसके संबंध में चर्चा करने पर मुख्य वन संरक्षक नरेंद्र कुमार सनोडिया ने बताया कि बालाघाट जिले का वन क्षेत्र टाइगर रिजर्व में आता है पेंच टाइगर रिजर्व और कान्हा टाइगर रिजर्व। यहां संरक्षण अच्छा होने के कारण बाघों की संख्या में वृद्धि होती है वर्तमान में करीब 30 बाघो की मौजूदगी देखी जा रही है। वन्य क्षेत्र के ग्रामीण कई भ्रमित रहते हैं मान्यता रहती है जानवर की चमड़ी के ऊपर बैठकर पूजा करेंगे तो धन की वर्षा होगी और ऐसी मान्यताओं के कारण अपराध करते हैं। वन्य प्राणी संरक्षण के लिए कुछ एनजीओ सक्रिय है जिनके द्वारा ग्रामीणों को जागरूक करने का कार्य किया जाता है। बाघों की सुरक्षा के लिए अलग से कुछ नहीं रहता है वन सुरक्षा के अंतर्गत ही वन्य प्राणियों और जंगल सभी की सुरक्षा हो जाती है। बाघो के रहवास के सुधार के लिए जरूर वन विभाग द्वारा कार्य किया जाता है जैसे जल क्षेत्रों का विकास, पेट्रोलिंग, मानसून गस्ती  की जाती है अंगार से भी वनों की सुरक्षा करते हैं सभी प्रयास हर समय चलते रहते हैं।

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