मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल में घुल रहा जातिवाद का जहर

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मध्य प्रदेश के राजनीतिक माहौल में भी जातिगत दबाव दिखाई देने लगा है। प्रदेश में पहला मौका है, जब जातियों के आधार पर दबाव बनाने वाले काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। राज्य सरकार ने भी जाति आधारित बोर्डों का गठन कर जातिवादी राजनीति को हवा दी है। जातिगत समीकरणों के चलते अब तक स्वर्णकार, तेलघानी, रजक, विश्वकर्मा और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड का गठन किया जा चुका है।

ऐसे में अन्य जातियों के लोग और सामाजिक संगठन भी राजनीतिक पार्टियों पर उनके प्रत्याशी को टिकट देने का दबाव बनाने की राह पर चल पड़े हैं। ये संगठन सरकार से अपने-अपने समाज के कल्याण बोर्ड के गठन की मांग भी कर रहे हैं। इधर कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कुछ सामान्य सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारने का इरादा जताते हुए तैयारी भी शुरू कर दी है।

दरअसल प्रदेश में पहले ही एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन और ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत 14 से बढ़ाकर 27 करने के बाद से समाज बंट गया है। ओबीसी आरक्षण बढ़ाने से सामान्य और एससी-एसटी दोनों वर्ग नाराज हैं। पदोन्नति में आरक्षण की वजह से सरकारी कर्मचारी नाराज हैं। सामान्य अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग समाज पार्टी (सपाक्स), अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी संघ(अजाक्स) और जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन(जयस) जैसे संगठन जातिवादी राजनीति को और हवा दे रहे हैं। इसका सीधा असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।

मुद्दों से भटककर जातिवादी समीकरणों में उलझा

नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की राजनीति में जातिवाद का रंग नजर आने लगा है। हालांकि जातिवाद की राजनीति करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा), सवर्ण समाज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मप्र में कभी सफल नहीं हुईं, लेकिन आगामी चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों के हिसाब से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदला हुआ है। चुनाव राजनीति मुद्दों से भटक कर जातिवादी समीकरणों में उलझ गया है।

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