रोजगार की तलाश में मजदूरों का महानगरों की ओर पलायन करने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।जिले के वनांचलो से मजदूर रोटी रोटी की तलाश में रोजाना ही महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं ।जिले में उद्योग व रोजगार के संसाधन ना होने से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का संकट बना हुआ है वहीं कम मजदूरी और समय पर भुगतान न होने के कारण मजदूर पलायन करने को मजबूर हैं। मजदूरों के पलायन के सामने शासन प्रशासन द्वारा चलाई जा रही मनरेगा व अन्य ढ़ेर सरकारी योजनाएं भी फीकी नजर आ रही है और लोग काम की तलाश में नागपुर तेलंगाना ,रायपुर , बल्लारशाह और हैदराबाद सहित अन्य महानगरों की ओर रोजाना ही पलायन कर रहे हैं जिसका एक नजारा रविवार की रात नगर के बस स्टैंड में देखने को मिला। जहां बैहर परसवाड़ा हर्राभाट क्षेत्र के कई मजदूर अपने कंधों पर चावल और कपड़ों की बोरी लिए हुए रोजगार की तलाश में अन्य महानगरों की ओर पलायन करते नजर आए।जिन्होंने पंचायत में मनरेगा के तहत काम ना मिलने, और जिले में उघोग व्यापार ना होने की बात कहते हुए मजबूरी में पलायन करने की बात कही है।
पलायन करने वालो में सरपंच का भतीजा भी शामिल
इसे जिले वासियों की बदनसबी कहे या फिर जिले में उद्योग धंधे व व्यापार की कमी या फिर जिम्मेदारों का उदासीन रवैया की जिले के ज्यादातर ग्रामीण अंचलों के लोग आजादी के 75 वर्ष बाद भी रोजगार की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर हैं। रविवार की रात नगर के बस स्टैंड में बैहर क्षेत्र ग्राम हर्रानाला के 10 से 15 लोगों को पलायन करते देखा गया। रोचक बात तो यह है कि इन पलायन करने वाले मजदूरों में ग्राम हर्रानाला की सरपंच श्रीमती देवकली बाई टेकाम का सगा भतीजा रवि टेकाम भी शामिल है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के आदिवासी वनांचलों में रहने वाले लोग रोजगार के लिए कितने मजबूर हैं और पंचायत में रोजगार देने के लिए चलाई जा रही मनरेगा सहित विभिन्न प्रकार की योजनाओं से लोगों को रोजगार मिल पा रहा है या नहीं।
सिर्फ चुनावी जुमला बना रोजगार देने का वादा
ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देने ,उद्योग लगाने और लोगों की आय बढ़ाने का दावा अब महज चुनावी जुमला बनकर रह गया है प्रत्येक लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दौरान तमाम राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि, लोगों के पलायन को रोकने व स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के दावे करते हैं लेकिन उनका यह दावा हर बार खोखला साबित होता है और चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि सत्ता के सुख में लोगों से किए गए वादे को भूल जाते हैं और 5 साल बाद पुनः चुनाव आने पर उद्योग व्यापार और रोजगार का जुमला पुनः दोहराया जाता है।
मनरेगा में नं वन जिला, फिर भी नही मिल रहा काम
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी बनी हुई है जिसके कारण ग्रामीण बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं ग्रामीणों को रोजगार देने के लिए प्रारंभ की गई मनरेगा से भी ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है जिस कारण मजबूर होकर ग्रामीण अन्य शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं जो वहां कुछ महा कार्य करने के बाद मजदूर अपने घर लौट जाते हैं।आपको बताए कि बालाघाट जिला मनरेगा के कार्य में अग्रिम जिला माना गया है ।मनरेगा के तहत लोगों को रोजगार देने में नंबर वन जिला बना हुआ है।बावजूद इसके भी जिले में रोजगार नही मिल पा रहा है और लोग महानगरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर है।
महानगरों में मिलती है अधिक मजदूरी
जिले से रोजगार की तलाश में जाने वाले मजदूरों की पलायन की असली वजह रोजाना काम और अधिक मजदूरी मिलना बताया जा रहा है।महानगरों में पहुंचने वाले ग्रामीणों को वहां अच्छी मजदूरी मिलती है इतना ही नहीं मजदूरी का भुगतान भी शतप्रतिशत सप्ताह की सप्ताह हो जाता है जिस कारण ग्रामीण बड़ी संख्या में महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। वही ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा सहित अन्य कार्य मे ना तो रोजाना काम मिलता है और ना ही अधिक मजदूरी। इस कारण ग्रामीण मजदूर महानगरो में जाकर मजदूरी करने के लिए मजबूर है।
2 सैकड़ा से अधिक गावों के ग्रामीण करते है पलायन
जानकारी के अनुसार जिले में करीब 693 ग्राम पंचायतें हैं जिसमें से लगभग 2 सैकड़ा से अधिक ग्राम पंचायतों के ग्रामीण रोजगार की तलाश में प्रतिवर्ष पलायन करते हैं।और पलायन का यह सिलसिला जिले में आजादी के 75 वर्षो से चल रहा है जो आज भी बदस्तूर जारी है। लेकिन आज तक इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई पहल नहीं हो पाई है ।
पहले कोरोना काल मे लगभग साढ़े 4 लाख मजदूरों की हुई थी घर वापसी
जिले में उद्योग और रोजगार के संसाधन नहीं होने से एक बार फिर मजदूर बड़ी संख्या में अन्य राज्यों और महानगरों में जाने को तैयार हैं ज्ञात हो कि कोरोना महामारी संक्रमण के बीच सरकार के द्वारा देशभर में किए गए प्रथम लॉकडाउन में सार्वजनिक परिवहन बंद होने से लाखो मजदूर सैकड़ों किलो मीटर का सफर पैदल व अन्य साधनों से तय कर वापस आए थे।उस समय के आकड़ो पर यदि गौर किया जाए तो उस समय सरकारी आकड़ो के मुताबिक पहले लाकडाउन में लगभग साढ़े 4 लाख मजदूर अन्य राज्यों और बाहरी शहरों से वापस आए थे लेकिन एक बार फिर रोजी-रोटी की तलाश में मजदूर जिले से बाहर जाने को मजबूर है।
वनांचलों से मजदूरो का होता है ज्यादा पलायन जिले में सबसे अधिक पलायन वनांचलों से होता है वनांचल क्षेत्रों में रोजगार की कमी होने के कारण यहां के ग्रामीण महानगरो की ओर पलायन करते हैं जानकारी के अनुसार बैहर विधानसभा क्षेत्र के हर्राभाट सोनगुड्ढा, डाबरी, लातरी, लूद, बिठली, पाथरी, डोरा, मोहगांव, सिंघाई, खिड़कीपुर, मललमठ्ठ, सुंदरवाही, सोनपुरी सहित अन्य ग्राम शामिल है इसी तरह परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम चिखलाजोड़ी, खुरसुड, मौनझोला, जैतपुरी, रूपझर, छपरवाही, टिटवा, हड्डीटोला, गुदमा, लगमा, राजपूर, पिंडकेपार, समनापुर, पोंडी, जगनटोला सहित अन्य ग्राम शामिल है इसी तरह कटंगी,तिरोड़ी,खैरलांजी, रामपाली क्षेत्र से भी ग्रामीण बड़ी संख्या में पलायन कर रहे है वही क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी ग्रामीणों के पलायन को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं।
गांव के कई लोग कर चुके है पलायन -त्रिलोक सिंह
इस पूरे मामले के संदर्भ में की गई चर्चा के दौरान ग्राम पंचायत हर्राभाट के ग्रामीण त्रिलोक सिंह ने बताया कि वे अपने साथियों के साथ रोजगार की तलाश में बल्लारशाह महाराष्ट्र जा रहे हैं। जिले में कोई काम नहीं मिल रहा है पंचायत में भी मनरेगा सहित अन्य योजनाओं के तहत कार्य नहीं मिल पा रहे हैं । इसकी पहले उन्होंने मनरेगा के तहत 2 तालाब निर्माण व मेढ़ बंधन में कार्य किया है लेकिन आज तक उसकी मजदूरी का भुगतान नहीं मिला है । यहां उद्योग धंधे भी नहीं है इसीलिए बेरोजगार ग्रामीण रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं इसके पूर्व भी गांव व आसपास क्षेत्र के कई लोग भी पलायन कर चुके हैं उन्होंने बताया की जिले में बड़े उघोग नही है।उद्योग कब लगेंगे और कब हमें रोजगार मिलेगा इसकी कोई जानकारी नहीं है सरकार हम जैसे बेरोजगारों के लिए कुछ नहीं कर रही है। इसीलिए हमें पलायन करना पड़ रहा है।
चाची सरपंच है फिर भी मनरेगा में नही मिल रहा काम-
वही मामले को लेकर की गई चर्चा के ग्राम हर्रानाला की सरपंच श्रीमती देवकली बाई टेकाम के सगे भतीजे रवि टेकाम ने बताया कि हम सभी लोग कमाने खाने के लिए बल्लारशाह जा रहे हैं हम सभी बेरोजगार हैं जिनके रोजगार के लिए सांसद विधायक मंत्री सहित अन्य ने कोई कार्य नहीं किया है जिले में रोजगार के कोई संसाधन नहीं है पंचायत में भी काम नहीं मिल रहा है। ग्राम पंचायत में उनकी सगी काकी देवकली बाई सरपंच है बावजूद इसके भी मनरेगा में हमें काम नहीं मिल रहा है। उन्होंने बताया कि चुनाव के समय युवाओं और बेरोजगारों को लेकर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद युवाओं और उनके रोजगार के लिए कुछ नहीं किया जाता इसीलिए हमें मजबूरी में पलायन करना पड़ रहा है।