काठमांडू: भारत और चीन ने हाल ही में लिपुलेख दर्रे के रास्ते व्यापार को खोलने पर सहमति जताई थी, लेकिन इससे नेपाल को मिर्ची लग गई है। नेपाल की केपी शर्मा ओली की सरकार इसके विरोध पर उतर आई है। ओली सरकार ने दो अलग-अलग राजनयिक नोट भेजकर भारत और चीन के सामने अपनी आपत्ति जताई है। काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने दोनों पड़ोसी देशों को अलग-अलग राजनयिक नोट भेजे हैं। ओली सरकार ने लिपुलेख को नेपाल का अभिन्न हिस्सा बताया है।
मंगलवार को नई दिल्ली में भारत और चीन के बीच सीमा पर विशेष प्रतिनिधियों की 24वें दौर की वार्ता के दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तीन पारंपरिक सीमा व्यापार मार्गों को फिर से खोलने पर सहमति व्यक्ति की थी। इनमें से एक मार्ग लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरता है। लिपुलेख दर्रा भारत, तिब्बत और नेपाल के ट्राइजंक्शन पर स्थित है।
नेपाल ने जताई आपत्ति
इस फैसले के बाद नेपाल सरकार पर दबाव बढ़ गया है। विदेश मंत्रालय ने बुधवार को ही एक बयान जारी कर कहा कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थिति लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी देश का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने उसी शाम को नेपाल के बयान को खारिज किया और जोर देकर कहा कि लिपुलेख दर्रे के माध्यम से व्यापार दशकों से होता आ रहा है।
भारत ने क्या कहा?
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि हमने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार फिर से शुरू करने के संबंध में नेपाल के विदेश मंत्रालय की टिप्पणियों पर ध्यान दिया है। इस संबंध में हमारी स्थिति सुसंगत और स्पष्ट रही है। लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और दशकों से चल रहा है।