स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर
नई दिल्ली : भारत में आबादी बढ़ने के साथ ही पेंशन योजनाएं महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन रही हैं। राहुल गांधी और इंडिया ब्लॉक ने 2004 में लागू नई पेंशन योजना (NPS) को समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना (OPS) को वापस लाने की मांग की थी। हाल ही में केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) लागू करने का फैसला किया, जिसमें न्यूनतम पेंशन की बात कही गई है। अब इस फैसले से देश में पेंशन व्यवस्था को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे 2004 में शुरू हुई NPS से पीछे हटना मान रहे हैं, तो कुछ इसे एक सकारात्मक कदम बता रहे हैं।
यूपीएस लेकर क्यों आई सरकार
ओपीएस के सबसे मजबूत समर्थक राहुल गांधी के लिए इसे जीत कहना एक गलती होगी। एनपीएस के मूल तत्व इसमें बरकरार हैं, और यूपीएस केवल एक न्यूनतम गारंटी प्रदान करता है कि ये पेंशन अंतिम वेतन का कम से कम 50 फीसदी होगी। यह एक सुधार की तरह है, लेकिन पीछे हटना नहीं है। यह समझदारी की जीत है और मजदूरों को दी जाने वाली ‘रेवड़ी’ की शिकस्त है। ओल्ड पेंशन स्कीम ने सिविल सेवकों को मुद्रास्फीति के अनुसार, अंतिम वेतन का 50 फीसदी पेंशन प्रदान किया। दुनिया भर में, इस तरह की ‘तय पेंशन’ लंबे समय तक दिवालियापन का नुस्खा साबित हुई। समय के साथ, इसने पेंशन को अधिक लेवल तक बढ़ाने पर जोर दिया। इससे न केवल सिविल सेवकों को बल्कि सभी नागरिकों को फायदा पहुंचाने वाले अन्य कार्यक्रम पीछे छूट गए। इसलिए, दुनियाभर की सरकारें सिविल सेवकों के ‘डिफाइन कंट्रीब्यूशन’ के आधार पर पेंशन की ओर बढ़ गई हैं।