अंतिम यात्रा में भी नहीं सुकून ,हिचकोले खाती जाती है अर्थी

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किसी व्यक्ति का निधन हो जाने के बाद ग्रामीणों को जितना दु:ख उसके चले जाने का नहीं होता है। उससे कई अधिक चिंता शवयात्रा के साथ श्मशान घाट तक पहुंचने की हो जाती है। क्योंकि गांव से अर्थी को श्मशान तक ले जाने के लिए सड़क तो दूर की बात, ठीक से पैर रखने की जगह भी नहीं नजर आती है। लेकिन शव को लेकर शमशान तक जाना जरूरी होता है। ऐसे में ग्रामीण जान हथेली पर रखकर गांव से श्मशान घाट तक का सफर तय करते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं गर्रा मोक्ष धाम घाट पहुंच मार्ग की। यहां पिछले कई सालों से मोक्षधाम घाट जर्जर मार्ग का पुनर्निर्माण नही कराया गया है और ना ही उक्त मार्ग की किसी ने सुध ली है ।जिसके चलते करीब 5 से 6 गांव के ग्रामीण काफी परेशान है। जहां के स्थानीय नागरिकों ने अंतिम शव यात्रा को हिचकोले खाने से बचाने और मोक्षधाम घाट पहुंच मार्ग का पुन:निर्माण कराए जाने की मांग शासन प्रशासन से की है. वहीं उन्होंने उक्त मार्ग को पीडब्ल्यूडी से वापस लेकर पंचायत को हैंडओवर जाने की गुहार लगाई है।

वैनगंगा नदी की गोद में बसे गर्रा मोक्षधाम घाट मार्ग काफी बदहाल हो चुका है।जिससे ग्रामीण भी अब त्रस्त हो चुके हैं। बावजूद इसके भी अब तक ना तो शासन प्रशासन ने उक्त मार्ग पर कोई ध्यान दिया है और ना ही जनप्रतिनिधियों ने इस मार्ग के निर्माण को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखाई है। जिसके चलते यह मार्ग अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आता है। जहां मार्ग का पुनः निर्माण ना होने के चलते लोगों को इस मार्ग से अंतिम यात्रा ले जाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। केवल 1 गांव ही नहीं बल्कि कई गांव के लोग किसी समस्या से परेशान हैं। बताया जा रहा है कि गर्रा मोक्षधाम घाट में ग्राम पंचायत गर्रा के अलावा ग्राम पंचायत लेडेझरी, माझापुर, डोंगरिया, आंवलाझरी, और जागपुर सहित अन्य गांव के ग्रामीण अंतिम शव यात्रा लेकर मोक्ष धाम पहुंचते हैं। जिन्हें गर्रा के जागपुर चौराहे से मोक्षधाम घाट तक अर्थी ले जाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जहां बरसात के दिनों में स्थिति और भी अधिक दयनीय हो जाती है और लोग गिरते पड़ते इस सफर को पूरा करते हैं।

गांव से श्मशान पहुंचने वाला मार्ग पूरी तरह जर्जर हो चुका है। वैसे तो पूरे साल यहां से आवाजाही करना ग्रामीणों के लिए परेशानी भरा है। लेकिन बारिश में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। क्योंकि जो चार लोग कंधा देते हैं। उन्हें पैर फिसलने और कंकर पत्थर की चुभन के कारण गिरने का भय बना रहता है। वहीं दूसरी ओर जो लोग चप्पल या जूते पहनकर चलते हैं। उन्हें भी कीचड़ अधिक होने के कारण गिरने का भय बना रहता है। ऐसे में यह लगभग आधा किलोमीटर तक का अंतिम सफर दुनिया छोड़कर जाने वाले से लेकर साथ चल रहे लोगों के लिए भी कष्टों से भरा होता है। जीते जी तो ग्रामीण परेशानियों का सामना करते ही हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि उन्हें मरने के बाद भी अंतिम सफर भी कष्टों से भरा मिलता है। ग्रामीणों ने इस समस्या से जिम्मेदारों को भी अवगत कराया है। लेकिन समस्या जस की तस है।

बताया जा रहा है कि कई बार पीडब्ल्यूडी विभाग से उक्त मार्गो को ग्राम पंचायत के सुपुर्द किए जाने की मांग की गई है लेकिन अब तक कोई सहमति नहीं बनी है जहां मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान ग्राम पंचायत सरपंच वैभव बिसेन ने उक्त मार्ग के पुनर्निर्माण के लिए आंदोलन का सहारा लेने की बात कही है।
Byte वैभव बिसेन, सरपंच (ग्राम पंचायत गर्रा)
वही इस पूरे मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान लोक निर्माण विभाग मुख्य कार्यपालन अधिकारी बीएस अडमें ने बताया कि उन्होंने अभी-अभी प्रभार ग्रहण किया है यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि पंचायत उक्त मार्ग को हेंडओवर लेना चाहती है तो हम जल्द से जल्द उक्त मार्ग को पंचायत के हैंडओवर करने की प्रक्रिया पूरी करेंगे।

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