अभिनव इमीग्रेशन अगले पांच सालों में 125 से 150 करोड़ रुपए के रेवेन्यू का लक्ष्य रखी है। इसके साथ ही कुल कर्मचारियों की संख्या भी इसी दौरान बढ़ाकर 1,000 करने की है। कंपनी के चेयरमैन अजय शर्मा ने यह जानकारी दी।
27 सालों से इमीग्रेशन के बिजनेस में हैं
अजय शर्मा ने कहा कि अभिनव इमीग्रेशन पिछले 27 सालों से वीजा और इमीग्रेशन के बिजनेस में है। कंपनी अब नए कॉर्पोरेट बिजनेस पर फोकस करने की योजना बना रही है। साथ ही विदेशों में पढ़ाई वाले डिवीजन पर ज्यादा फोकस करेगी। उन्होंने कहा कि समय आने पर कंपनी आईपीओ के लिए भी योजना बना रही है। पर IPO तब आएगा, जब कंपनी अपने रेवेन्यू के लक्ष्य को हासिल कर लेगी।
25-30 सालों से काफी बदलाव हुआ
वे कहते हैं कि इमीग्रेशन इंडस्ट्री में पिछले 25-30 सालों में काफी बदलाव हुए हैं। पर जब-जब बड़े डेवपलमेंट हुए हैं, इस इंडस्ट्री में अच्छा परिवर्तन आया है। जबकि रातों-रात कुछ घटनाओं ने इस इंडस्ट्री को प्रभावित भी किया। अब भारत में वीजा इंडस्ट्री को रेगुलेट करने की जरूरत है।
कई बदलाव गेमचेंजर साबित हुए
अजय शर्मा कहते हैं कि अब तक के महत्वपूर्ण बदलाव जो आगे चलकर गेमचेंजर साबित हुए, उसमें तीन घटनाएं प्रमुख हैं। 1990 की शुरुआत में मेल्टडाउन, 11 सितंबर की आतंकी घटना और 2008 की मंदी जैसे कुछ बड़े डेवलपमेंट थे इन घटनाओं में शामिल थे। इन घटनाओं ने आमूलचुल परिवर्तन करके रख दिया। इसके अलावा, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और न्यूजीलैंड जैसी सरकारों द्वारा इमीग्रेशन रेगुलेटरी पॉलिसी में रातों रात परिवर्तन जैसी घटनाओं ने सभी को प्रभावित किया।
भारत में अभी तक रेगुलेट नहीं है वीजा इंडस्ट्री
वे कहते हैं कि इमीग्रेशन वीजा और विदेशों में कंसल्टिंग स्टडी इंडस्ट्री को अभी तक भारत में रेगुलेट नहीं किया गया है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि इनका वॉल्यूम काफी बड़ा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूनाइटेड किंग्डम, कनाडा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में जाने वाले छात्रों और अन्य प्रोफेशनल्स की संख्या बहुत बड़ी है। इन देशों ने इस इंडस्ट्री को अच्छी तरह से रेगुलेट किया है। सरकारी तंत्र उस पर मॉनिटर करता है। भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है।
कनाडा में इमीग्रेशन की नीतियां काफी सख्त हैं
अजय शर्मा कहते हैं कि कनाडा में इमीग्रेशन नीतियां काफी सख्त हैं। यहां तक कि इमीग्रेशन कंसल्टिंग में शामिल भारतीय कंपनियों को भी आईसीसीआरसी (कनाडा सरकार द्वारा नियुक्त रेगुलेटर) द्वारा स्थापित रेगुलेशन से होकर गुजरना पड़ता है। उनके एजेंट के रूप में काम करना पड़ता है। लेकिन इस मैकेनिज्म को भी विभिन्न तरीकों से कंपनियों द्वारा छोड़ दिया जाता है। क्लाइंट एग्रीमेंट्स पर सीधे कंपनी के साथ साइन करते हैं। इसमें कहा जाता है कि वे इमीग्रेशन कंसल्टिंग सर्विसेज नहीं दे रहे हैं।
विदेशों में जाने की शुरुआत डॉलर कमाने से हुई
भारत से बाहर बसने की बदली हुई परिस्थितियों के बारे में वे कहते हैं कि विदेशों में जाने की शुरुआत तो डॉलर कमाने से हुई लेकिन नई सदी तक आते-आते यह लॉ एंड ऑर्डर का सवाल बन गया। बाद में लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए विदेश भेजने लगे। फिर दशकों बाद यह क्वालिटी लाइफ का सवाल बन गया। ताजातरीन बात करें तो अब लोग महामारी के बाद की उभरी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विदेश जाने लगे हैं।
आने वाले दिनों में आवाजाही और बढ़ेगी
उनका मानना है कि एक से दूसरे देशों में आवाजाही आने वाले दिनों में और बढ़ेगी। इसके मद्देनजर इमीग्रेशन, विदेशों में पढ़ाई और वीजा की कंसल्टिंग इंडस्ट्री को ठीक-ठाक रेगुलेशन चाहिए। शर्मा का नाम भारत के उन गिने-चुने अग्रणी लोगों में होता है जिन्होंने इस देश के उद्योग को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
नए-नए उद्यमी आए हैं इस इंडस्ट्री में
अभी इस इंडस्ट्री में नए-नए युवा उद्यमी आए हैं जो इंटरनेट और डिजिटल की दुनिया से ज्यादा वाकिफ हैं। यही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। आजकल तो वीजा दिलाने और वीजा कंसल्टिंग की कंपनियों की हजारों वेबसाइट्स की मार्केट में बाढ़ आई हुई है। पर ग्राहकों को सोच समझकर इनकी सेवाओं को लेना चाहिए।