आधुनिकता की पहचान बन गए बड़े शहरों से अमेरिकियों का मोहभंग हो गया है। अमेरिका में शहरों की सर्वोच्चता का दौर खत्म हो गया है। मिडिल क्लास अमेरिकियों को लगने लगा है कि अब मेट्रो शहरों में रहने की जरूरत नहीं रह गई है। इसलिए वे बाहरी इलाकों और छोटे कस्बों में बसने लगे हैं।
बड़े शहरों को हमेशा के लिए छोड़ दिया है। हाल यह है कि 1990 के बाद पहली बार 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले अमेरिका के 56 बड़े शहरों की आबादी घटी है। इन शहरों में रियल एस्टेट कारोबार भी घाटे में चला गया है। घरों की कीमत घट रही है। दफ्तरों वाली जगहें तो कोरोना के बाद से ही खाली हैं और उन्हें शूटिंग स्पेस के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। मेट्रो शहरों के कई रियल एस्टेट प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं। हजारों फ्लैट खाली पड़े हैं।
अब आर्थिक गतिविधियां शहरों में केंद्रित नहीं
दरअसल, दुनिया का अर्थशास्त्र बदल रहा है। कुछ कोरोना ने बदला, कुछ तकनीक ने। अब आर्थिक गतिविधियां शहरों में केंद्रित नहीं रहीं। कंपनियां छोटे शहरों से भी कारोबार कर रही हैं। वर्क फ्रॉम होम मॉडल वर्किंग सिस्टम का हिस्सा बन गया है। शोध संस्थान ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के सीनियर फेलो विलियम फ्रे बताते हैं- आईटी, फाइनेंस, रियल एस्टेट और एंटरटेनमेंट सेक्टर के कर्मचारी सबसे बड़ी संख्या में शहर छोड़ रहे हैं।
संपत्ति कर भी घट गया
लाखों की संख्या में शहर छोड़ने वाले ज्यादातर लोग पेशेवर हैं। इनकी सैलरी औसत से ज्यादा है। ये लोग बड़े करदाता थे। इनके जाने से शहरों के राजस्व में भारी कमी आई है। न्यूयॉर्क-वॉशिंगटन जैसे बड़े शहरों को मिलने वाला संपत्ति कर भी घट गया है। ऑफिस और होटल टैक्स में भी काफी कमी हो गई है। दूसरी ओर राजस्व के मामले में कस्बे धनी होते जा रहे हैं। अब मेट्रो शहरों में रहने वाले नौकरीपेशा लोगों में सबसे ज्यादा सर्विस, स्वास्थ्य, हॉस्पिटैलिटी और फूड सेक्टर से जुड़े लोग हैं।
कस्बों की डेमोग्राफी बदली
लोगों के शहर छोड़ने से बड़े शहरों और कस्बों दोनों की डेमोग्राफी भी बदल रही है। लॉस एंजिलिस के लॉन्ग बीच, शिकागो के नेपरविले और एल्गिन, फिलाडेल्फिया के कैमडन और विल्मिंगटन में कहीं श्वेतों की संख्या बढ़ गई है तो कुछ काउंटी में अश्वेत बहुतायत में हो गए हैं। अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम कहते हैं- इससे अमेरिकी शहरों का बोझ कम होगा। महंगाई घटेगी। कम आय वाले लोगों और विद्यार्थियों के लिए मेट्रो शहरों में जिंदगी ज्यादा आसान होगी।
अमेरिका ही नहीं, ब्रिटेन-नार्वे जैसे पूर्वी यूरोप के बड़े शहर भी खाली हो रहे
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम कहते हैं- सिर्फ अमेरिका के शहर ही नहीं खाली हो रहे, बल्कि उत्तरी यूरोप का भी यही हाल है। स्वीडन, ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे जैसे पूर्वी यूरोप के कई देशों में पेशेवर लोग बड़े शहर छोड़ रहे हैं। 1980 से 2019 तक शहर के केंद्र में रहने की चाहत सबसे ज्यादा थी। पेशेवर और मैनेजर स्थायी तौर पर हाइब्रिड मोड में काम कर रहे हैं। कुछ दिन दफ्तर से तो कुछ दिन घर से। ऐसे में वे शहरों से दूर बस रहे हैं।