अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा टेलीफोन

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बालाघाट (पद्मेश न्यूज़)। 90 से 2000 के दशक में टेलीफोन हायर सोसाइटी का स्टेटस सिंबॉल माना जाता था। टेलीफोन घर पर लगवाने वाले पूरे मोहल्ले और कॉलोनी में किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं हुआ करते थे। यही नहीं टेलीफोन की एक घंटी पूरे परिवार के साथ – साथ पड़ोसियों का भी ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेती थी और न जाने इस टेलीफोन की कितनी कहानियां और किस्से हम आपके दिल में बसे हो, लेकिन आज यही टेलीफोन का बीएसएनएल कार्यालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
टेक्नोलॉजी और मोबाइल युग को माना जा रहा बदहाली का कारण
इस बदहाली की वजह समय के साथ टेक्नोलॉजी और मोबाइल युग को ही माना जा सकता है और उससे भी कहीं ज्यादा शासन द्वारा निजीकरण और निजी कंपनियों को बढ़ावा देना। इस विपरित दौर से निकलने बीएसएनएल से जुड़े कर्मचारी संगठनों द्वारा संघर्ष किया जा रहा है और बीएसएनल के अस्तित्व को वापस लाने लगातार सरकार के साथ लड़ाई लड़ी जा रही है।
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा बीएसएनएल कार्यालय
शहर के विश्वेश्वरैया चौक स्थित बीएसएनएल कार्यालय आज गुमनामी और बदहाली के दौर से गुजर रहा है समय के साथ साथ बीएसएनएल में कार्यरत कर्मचारी रिटायर हो गए या फिर सेवानिवृत्ति दिलवा दी गई। बचे हुए चंद कर्मचारी अधिकारियों के साथ बीएसएनएल इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हालात इतने अधिक खराब है कि एक समय शानो शौकत का प्रतीक माने जाने वाली बीएसएनएल की तीन मंजिला इमारत आज जर्जर और बदहाल स्थिति में है छत से प्लास्टर गिर रहा है बावजूद उसके नीचे कर्मचारी की मजबूरी यह है की उम्र के इस दौर में उन्हें भय के साए में काम करना पड़ रहा है।
मजबूरी बन गई जर्जर कार्यालय में बैठकर काम करना
इस विषय पर जब हमने बीएसएनएल के अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने कैमरे पर कुछ कहने से इनकार करते हुए कहा कि जो कुछ आपके सामने दिख रहा है वही सच है ऐसी स्थिति में भी काम कर रहे हैं। पूरे समय दुर्घटना का डर उन्हें सताता रहता है। बावजूद इसके उनकी मजबूरी है इस कार्यालय में बैठकर काम करना। समय के साथ-साथ बीएसएनल की इनकम इतनी कम होती जा रही है कि बीएसएनएल को दूसरे स्थान पर स्थित भी नहीं किया जा सकता ना ही इस कार्यालय की मरम्मत के लिए राशि जुटाई जा सकती है।

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