आज ही के दिन जिनवाणी को लिपिवद कर इन ग्रंथों की महापूजा की थी : सुधासागर

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श्रुत पंचमी ज्ञान की आराधना का महापर्व है। आज के ही दिन आचार्य धरसेन स्वामी ने आचार्य पुष्प दन्त भूतवलि महाराज को ज्ञान देकर दृव्आदसांग जिनवाणी को लिपिवद कर पूर्ण कर इन ग्रंथों की महा पूजा की थी। सबसे पहले णमोकार मंत्र लिखा गया। भगवान महावीर स्वामी के उपदेश को गड़धर स्वामी ने ग्रहण कर अपनी परम्परा से हुये आचार्य को देते हुए आचार्य धरसेन स्वामी तक पहुंचाया। उन्होंने निमित्त ज्ञान से जाना कि आगे यह ज्ञान मौखिक नहीं चलेगा, तब दक्षिण भारत मुनि संघ को पत्र भेजा, तब दो साधुओ के प्रमुख आचार्यों ने दो मुनि राजो पुष्प दंत भूतबलि महाराज को धरसेन स्वामी ने स्वीकार किया। यह बात चमलेश्वर तीर्थ भीलवाड़ा से सीधे प्रसारण में मुनि पुगंव सुधासागर महाराज ने श्रुत पंचमी समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय जैन धुर्रा ने बताया कि कोरोना गाइड लाइन को देखते हुए जिज्ञासा समाधान में भक्तों के निवेदन पर मुनिश्री ने आशीर्वाद व सानिध्य में सीधे प्रसारण के साथ पूरे अंचल पिपरई, शाढ़ौरा, चन्देरी, मुंगावली, ईसागढ़, बहादुरपुर में भक्ति भाव के साथ श्रुत पंचमी पर्व मनाया गया। इस के लिए सबसे पहले नैमितिक पूजा अभिषेक किया गया, फिर श्रुत पूजन जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प दीप धूप आदि से की गई। इसके बाद श्रुत आराधना रूप श्रुत विधान के मंत्रों का उच्चारण प्रतिष्ठा चार्य प्रदीप भैया के मुख से हुआ। श्रुत पंचमी की कथा सुनाते हुए मुनि पुगंव सुधासागर महाराज ने कहा कि दान हमेशा योग्य पात्र को ही दिया जाता है। खोटे व्यक्ति को दान देने से दाता की दुरगति होती है। इसलिए दान पात्र को खोज कर देना चाहिए पात्र को दिया दान अंनत गुना होकर फलता है। श्रुत पंचमी के पवित्र दिन मंदिरों और अपने घरों में रखे हुए पुराने ग्रंथों की साफ-सफाई कर, धर्म शास्त्रों को यथा स्थान रखने की प्रेरणा देना चाहिए।

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