‘नमस्कार दोस्तों, आप सुन रहे हैं 18.77 एफएम जेल वाणी… जिसके ‘पर्ची आपकी गीत हमारे” कार्यक्रम में आपका स्वागत है। हमारे बंदी भाइयों ने जिन गीतों की फरमाइश की है, उन्हें हम आपको सुनाने जा रहे हैं।” शहर की केंद्रीय जेल में अब इस तरह के संवाद सुनाई देते हैं। जहां पहले सिर्फ सायरन, अपराध, सजा, नियम-कायदों की ही बातें ही सुनाई देती थीं, वहीं अब गीत, भजन और परिचर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया है। सुबह भजन से शुरू होती है और शाम फिल्मी गीतों से गुलजार होती है।
इस प्रयास को एफएम नाम जरूर दिया गया है लेकिन गीत-भजनों के यहां रिकार्ड नहीं बजाए जाते बल्कि अधिकारी, कर्मचारी और बंदी खुद प्रस्तुतियां देते हैं। प्रस्तुति के पहले उसका रियाज भी किया जाता है। बंदियों को गाने का मौका देने के लिए पहले उनके आचरण को देखा जाता है। अच्छे आचरण और अनुशासन में रहने वाला बंदी यदि प्रस्तुति देना चाहता है तो उसका आडिशन लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्तमान में यहां जेल अधीक्षक अलका सोनकर, डिप्टी जेलर पूजा मिश्रा, सुनील मंडलेकर, दिनेश डांगी, प्रहरी अमित वालेकर के अलावा करीब 8 बंदी यहां गीतों की प्रस्तुतियां देते हैं।
इसलिए की शुरुआत : शहर की 145 वर्ष पुराने केंद्रीय जेल में अब मनोरंजन के साथ प्रतिभाओं को मंच देने, अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ बंदियों के तनाव व नकारात्मकता को दूर करने के लिए अनूठी पहल एफएम के जरिए की गई है।
इस तरह मिला नाम : चूंकि यह जेल 1877 में बनी। इसलिए इसका नाम ही वर्ष के अंकों के आधार पर ही 18.77 एफएम जेल वाणी रख दिया गया है।
गीत-संगीत के साथ संवाद : जेल वाणी के जरिए न केवल गीत-भजन सुनाए जाते हैं अपितु बंदियों को अपने मन की बात, अपनी कहानी कहने का मौका भी मिलता है। अधिकारियों द्वारा देश-दुनिया के समाचार यहां से बंदियों को सुनाए जाते हैं। बंदी भी आरजे (रेडियो जाकी) की तरह कार्यक्रम संचालित करते हैं। स्वास्थ्य, पेरोल, जेल के नियम आदि भी इसके जरिए बताए जाते हैं। अलग-अलग विषयों पर परिचर्चाएं प्रसारित की जाती हैं। गीतों की प्रस्तुतियों में फिलहाल कराओके की मदद ली जा रही है।
आ रहा सकारात्मक बदलाव – जेल अधीक्षक अलका सोनकर ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा की जाने वाली मन की बात सुनकर यह खयाल आया कि बंदियों, अधिकारियों व विशेषज्ञों को भी अपने मन की बात कहने का मौका दिया जाए। चूंकि आज भी रेडियो लोगों से जुड़ा हुआ है, इसलिए मन की बात कहने का जरिया रेडियो को बनाया और इस एफएम की शुरुआत की। इसमें अधिकारी, कर्मचारी और बंदी तीनों ही वर्ग महती भूमिका निभा रहे हैं। इस पहल से बंदियों में सकारात्मक बदलाव भी नजर आने लगा है। बंदियों की उदासीनता और उनकी बातों में नकारात्मकता अब कम होने लगी है। इसे इसलिए भी शुरू किया गया कि खाली वक्त रचनात्मकता में बीते और बंदियों की प्रतिभा को मंच मिल सके।