गाजा युद्ध के बीच भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह को लेकर बड़ा समझौता किया है। इस समझौते के बाद भारत को चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए 10 साल का अधिकार मिल गया है। विश्लेषकों का कहना है कि रणनीतिक रूप से बेहद अहम यह बंदरगाह भारत के लिए यूरोप और रूस के दरवाजे खोल सकता है। चाबहार ईरान के पाकिस्तान से सटे सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत का एक डीप वॉटर पोर्ट है जिसे चीन के बनाए जा रहे ग्वादर पोर्ट का जवाब कहा जा रहा है। ईरान का यह पोर्ट भारत के सबसे करीब है और विशाल कार्गो शिप के लिए आना जाना बहुत आसान होगा। भारत और ईरान के बीच इस डील के बाद अमेरिका बुरी तरह से भड़क गया है और उसने प्रतिबंधों की धमकी दी है। यह वही अमेरिका है जो चीन के खिलाफ चुप्पी साधे बैठा है जो ईरान के साथ अरबों की तेल डील करके मालामाल हो रहा है।
ईरान के साथ चीन ने अरबों डॉलर तेल समझौता किया है। दरअसल, अमेरिका के प्रतिबंध लगाने के बाद ईरान का तेल निर्यात बंद हो गया। यहां तक कि भारत ने भी तेल खरीदना बंद कर दिया। इससे चीन को बड़ा मौका मिल गया और उसने ईरान के साथ बेहद सस्ती दर पर अरबों डॉलर का कई वर्षों तक चलने वाला तेल समझौता कर लिया। यही नहीं चीन ने रूस के साथ भी बेहद सस्ती दर पर बड़े पैमाने पर तेल और गैस खरीदा है। वह भी तब जब यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के खिलाफ अमेरिका ने कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं।
ईरान से कैसे चीन पहुंचता है तेल
अमेरिका की अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान और रूस से सस्ता तेल खरीदकर चीन को साल 2023 में ही 10 अरब डॉलर का फायदा हुआ। पिछले कुछ वर्षों में चीन और ईरान ने तेल व्यापार के लिए एक पूरा तंत्र विकसित कर लिया है जो पश्चिमी बैंकों और शिपिंग सेवाओं को बायपास करता है। ईरान चीन को डॉर्क फ्लीट टैंकर्स से तेल का निर्यात करता है और चीन के छोटे बैंकों के जरिए चीनी मुद्रा युआन में पैसा पाता है। ये डार्क फ्लीट बिना ट्रांसपोंडर्स का इस्तेमाल किए तेल पहुंचाते हैं ताकि पकड़ में नहीं आएं।