कोरोना वायरस संक्रमण कितना घातक और कितना खतरनाक हो सकता है, इस बात का अनुमान कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में जिले वासियों को हो चुका है। आज हम एक ऐसे ही एक परिवार की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं जो कोरोना महामारी त्रासदी की भेंट चढ़ गया। कैसे कुछ दिन में एक-एक कर इस परिवार के पांच सदस्य मौत के काल में समा गए।
दरअसल यह दुखद कहानी है बोनकट्टा निवासी किरनापुरे परिवार की। गोविंदराम किरनापुरे अपने दो बेटों महेंद्र किरनापुरे और संतोष किरनापुरे के साथ के साथ संयुक्त परिवार में बोनकट्टा में रहते थे।
संतोष किरनापुरे उम्र 48 वर्ष जिले के ही गोरेघाट शासकीय स्कूल में शिक्षक थे इसलिए उनका परिवार गोरेघाट में ही रहता था। लेकिन लॉकडाउन के बाद से वह भी अपने परिवार के साथ बोनकट्टा आ गए थे।
इस बीच संतोष के बड़े भाई महेंद्र किरनापुरे उम्र 53 वर्ष कोरोना पॉजिटिव हो गए। परिवार के लोगों ने ही उन्हें इलाज के लिए जिला अस्पताल बालाघाट में भर्ती कराया जहां उनकी 17 अप्रैल को इलाज के दौरान मौत हो गई।
लेकिन इस बीच महेंद्र के माता पिता उसके संपर्क में आए थे। जिस कारण वे भी कोरोना से संक्रमित हो गए। और 20 अप्रैल को उनकी मां सुशीला किरनापुरे और 21 अप्रैल को उनके पिता गोविंदराम किरनापुरे का निधन हो गया।
माता पिता के संक्रमित होने पर संतोष और उनकी पत्नी नीलू किरनापुरे ने उनकी खूब सेवा की जिस कारण वे भी संक्रमित हो गए।
संतोष किरनापुरे और उनकी पत्नी नीलू किरनापुरे उम्र 38 वर्ष की भी तबीयत बिगड़ने लगी। इस बीच संतोष किरनापुरे की बेटी खुशी किरनापुरे जो कि झाबुआ शासकीय कालेज से बीटेक की पढ़ाई कर रही है।
पापा और मम्मी के इलाज के लिए बालाघाट से लेकर गोंदिया तक बेड उपलब्ध होने की जानकारी जुटाई। लेकिन कहीं भी बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। वह जैसे तैसे अपने पिता संतोष किरनापुरे को इलाज के लिए गोंदिया के निजी अस्पताल लेकर गई।
इसी बीच 28 अप्रैल को संतोष की पति और खुशी की प्यारी मम्मी नीलू का आक्सीजन लेवल कम होने से मौत हो गई।
बीते 15 दिनों के दौरान बड़े पापा दादा दादी की मौत से खुशी के सामने दोहरी जिम्मेदारी थी। एक तरफ पिता संतोष किरनापुरे अस्पताल में भर्ती थी तो दूसरी और मम्मी नीलू किरनापुरे का निधन हो चुका था।
कोविड-19 से संक्रमित किरनापुरे परिवार के पहले ही तीन लोगों की मौत से परिजन रिश्तेदार भी बहुत अधिक खौफ जदा थे। जैसे तैसे उसने फोन पर सभी को जानकारी दी और बहुत कम लोगों की उपस्थिति में नीलू किरनापुरे का अंतिम संस्कार किया गया।
गोंदिया अस्पताल के बाहर खुशी अपने पिता संतोष किरनापुरे के स्वस्थ होने के लिए मन ही मन दुआ करने लगी। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। 1 मई को खुशी के प्यारे पापा भी दादा-दादी बड़े पापा और मम्मी के पास चले गए।
जिनका कोविड-19 से गोंदिया में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया। गोंदिया से खाली हाथ लौटी खुशी के ऊपर जैसे गम का पहाड़ टूट चुका था। लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ भी उस पर बहुत बड़ा था घर पर छोटा भाई आयुष अपनी दीदी की राह देख रहा था।
खुशी में स्वयं को संभाला और घर पहुंची तो घर पर बड़ी मम्मी उनके तीन बच्चे और का स्वयं का भाई आयुष एक दूसरे को ढांढस बंधा रहे थे।
पद्मेश न्यूज़ से दूरभाष पर चर्चा के दौरान खुशी ने बताया कि अब उनकी उम्मीदें शासन से है।
पापा मम्मी के साथ बड़े पापा, दादा दादी घर के सभी जिम्मेदार लोग चले गए। इसलिए शासन से उनकी उम्मीदें हैं कि वे उन्हें और उनके बड़े पापा के बच्चों को अनाथ पेंशन योजना सहित अन्य योजना का लाभ दें। जिससे उनका परिवार इस कोविड की त्रासदी और परिजनों के निधन से उभर पाए।