राजा हर्षवर्धन द्वारा 13वीं शताब्दी में बसाया गया हरसूद कस्बा अब अतीत बन चुका है। इसके बदले जो नया हरसूद बसाया गया, वो मूलभूत सुविधाओं के साथ विस्थापन का दर्द झेल रहा है। करीब 20 वर्ष बाद भी नया हरसूद में बसाए गए लोगों को उनके भूखंडों का मालिकाना हक नहीं मिला है। यहां के विस्थापित लोग कहते हैं कि बांध के पानी की वजह से हमारा शहर भले ही मर गया, लेकिन उसकी यादें हमारे दिलों में अमर हैं। विस्थापन के समय इसे चंडीगढ़ की तर्ज पर बसाने का वादा किया गया था, पर वो वादा केवल वादा ही रह गया।
भाजपा विधायक विजय शाह ने क्षेत्र में भले ही सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनवा दिए हों पर वे अभी तक हमें हमारे घरों का मालिकाना हक नहीं दिलवा पाए हैं। हरसूद विधानसभा क्षेत्र के खालवा ब्लाक में पलायन और कुपोषण की समस्या भी गंभीर है। इसके बाद भी यहां के मतदाताओं पर स्थानीय विधायक और वन मंत्री विजय शाह ने ऐसा जादू कर रखा है कि बीते तीन दशक से वे यहां से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं।
विधायक का दावा
हमने स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिंचाई को लेकर कई काम किए है। मैं क्षेत्र के लोगों के सतत संपर्क में रहता हूं। कांग्रेस के लोग चुनाव के समय ही सक्रिय नजर आते हैं। हम क्षेत्र के विकास की योजना के लिए मुख्यमंत्री से भी मिलते हैं। हमने कई योजनाएं मंजूर भी करवाई हैं। कुपोषण और पलायन की समस्या के हल के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। – विजय शाह, विधायक और वन मंत्री
विपक्ष का प्रतिकार
हरसूद में कोई भी बड़ा काम नहीं हुआ है। पलायन, कुपोषण से पूरा क्षेत्र जूझ रहा है। हरसूद को चंडीगढ़ बनाने का सपना दिखाया गया था, पर इसे लेकर भी कोई काम नहीं हुआ है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से भी विस्थापितों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं देता है।