कोरोना महामारी की शुरुआत के मुकाबले वर्ष 2022 में वैक्सीन के प्रति लोगों का भरोसा घटा

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कोरोना महामारी की पहचान किए जाने के एक साल के अंदर इसके खिलाफ सुरक्षित और असरदार टीका विकसित करने, इसकी जांच और इसे लोगों को लगाने का काम शुरू कर दिया गया। यह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसके बावजूद महामारी से पहले के मुकाबले वर्ष 2022 में टीकों के प्रति लोगों का भरोसा घट गया है। टीके के प्रति भरोसे से आशय जनता के बीच यह विश्वास है कि टीके न केवल काम करते हैं, बल्कि ये सुरक्षित और प्रभावी चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा भी हैं।
वर्ष 2022 में किए गए सर्वेक्षण में प्रतिभागियों से पूछा गया कि टीके के प्रति उनका भरोसा बदला है या नहीं। इस सवाल के जवाब में करीब 25 फीसदी लोगों ने कहा महामारी के बाद से टीके के प्रति उनका भरोसा कम हुआ है। दो साल पहले कोविड-19 रोधी टीके की पहली खुराक लगाए जाने के बाद से करोड़ों लोगों की जान बचाए जाने का अनुमान है, लेकिन सवाल उठता है कि कोविड-19 टीके की निर्विवाद सफलता के बावजूद क्या टीकों प्रति लोगों का भरोसा कम हुआ है।
हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है, जिसमें हमने महामारी से पहले और कोविड-19 टीकाकरण शुरू होने के बाद टीके के प्रति लोगों के भरोसे की तुलना की है। परिणाम की तुलना के लिए दो ऑनलाइन सर्वेक्षण किए गए। एक सर्वेक्षण नवंबर, 2019 में और दूसरा जनवरी 2022 में किया गया। सर्वेक्षण में 1,000 से अधिक वयस्कों को शामिल किया गया। सर्वेक्षण से पता चला महामारी से बाद के समूह में टीकों के प्रति भरोसा महामारी से पहले के समूह के मुकाबले काफी कम है।
उम्र, लिंग, धार्मिक विश्वास, शैक्षणिक स्तर और नस्ल से परे टीके के प्रति भरोसे में इस कमी का निरीक्षण किया गया।
दोनों सर्वेक्षण में एक अंतर यह मिला कि महामारी से पहले वाले समूह में मध्यम उम्र के प्रतिभागियों में युवा प्रतिभागियों के मुकाबले टीका लगवाने के प्रति झिझक काफी अधिक दिखी, लेकिन वर्ष 2022 के समूह में यह स्थिति देखने को नहीं मिली। इस निष्कर्ष को आंशिक रूप से इस तथ्य के साथ स्पष्ट किया जा सकता है कि कोविड-19 को बुजुर्ग मरीजों के लिए अधिक घातक माना गया, क्योंकि कोविड-19 के युवा मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने और मौत का खतरा कम रहता है। इसलिए अधिक उम्र के लोग टीका लगवाने के प्रति अधिक प्रोत्साहित हुए। वर्ष 2019 और 2022 के सर्वेक्षण में धार्मिक मान्यता वाले लोगों में नास्तिकों और निरीश्वर वादियों की अपेक्षा टीका लगवाने के प्रति झिझक अधिक थी। इसी तरह एशियाई और अश्वेत पृष्ठभूमि के लोगों में श्वेत लोगों की अपेक्षा टीका लगवाने में झिझक अधिक दिखी, लेकिन दोनों में से किसी भी सर्वेक्षण में लिंग और टीके के प्रति भरोसे में कोई संबंध नहीं दिखा।

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