इंदौर जिले की महू तहसील के चिखली गांव में में राज्य शासन ने 1983-84 में कमजोर आय वर्ग के जरूरतमंद लोगों को खेती के लिए शासकीय भूमि पट्टे पर दी थी। पट्टे पर मिली शासकीय जमीन अवैध तरीके से बेचने वाले ऐसे 14 पट्टेदारों के पट्टे निरस्त कर प्रशासन ने जमीन छीन ली है। साथ ही अपर कलेक्टर पवन जैन ने मामले की सुनवाई कर यह जमीन वापस शासन के नाम दर्ज करने के आदेश किए हैं। कुल 55 एकड़ इस जमीन की कीमत 50 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
इन पट्टेदारों में देवकरण पूना व शैतानबाई पूना, अम्बाराम नारायण, कैलाश गोवर्धन, चंदाबाई बाबूलाल, आत्माराम छोगालाल भील, वासुदेव गंगाराम, परमानंद जगन्नाथ, नारायण भेरा, चैनसिंह उमराव भील, सुखलाल नानका भील, नाथू कालू, देवीसिंह प्रेमचंद, सूरजबाई मेहताब और मुकामसिंह जयराम भील शामिल हैं।
दरअसल शासन ने इन निम्न आय वर्ग के लोगों को शासकीय जमीन पट्टे पर इसलिए दी गई थी यह लोग खेती करके अपना जीवन-यापन कर सकें।
पट्टे की जमीन को लेकर शासन की यह शर्त होती है कि इसे जमीन देने के 10 साल तक किसी को बेचा नहीं जा सकता। इसके बाद भी जमीन बेचने के लिए कलेक्टर की अनुमति अनिवार्य होती है। पर इन पट्टेदारों ने नियमों का उल्लंघन कर बिना शासकीय मंजूरी के कुछ साल पहले यह जमीन दूसरों को बेच दी। इन पट्टेदारों ने शासन से मिली जमीन गुपचुप तरीके से दूसरों को बेची। इस तरह गरीब और जरूरतमंद लोगों को जिस उद्देश्य के लिए शासकीय जमीन दी गई, वह पूरा नहीं हुआ। जमीन उन पैसे वालों ने खरीदी है जो इसका उपयोग अन्य कामों के लिए करेंगे।
जिला प्रशासन के समक्ष इस मामले की शिकायत दो साल पहले आई थी। प्रशासन ने महू एसडीएम और तहसीलदार से प्रकरण की रिपोर्ट बुलाई। इसके बाद पट्टेदारों को सुनवाई का अवसर भी दिया। इस जमीन पर भूमिहीन पट्टेदार खेती करके अपना और परिवार का जीवन यापन बेहतर तरीके से कर सकते थे, लेकिन शासन की अनुमति लिए बिना और नियमों के खिलाफ जाकर इस जमीन की खरीदी-बिक्री की गई।