काश! आज मेरे पास भी रुपए होते, तो मैं जर्मनी में भारत का नाम रोशन कर रहा होता, लेकिन मेरी बदकिस्मती है कि मैं गरीब हूं और मेरी मेहनत को देखने वाला कोई नहीं है।
यह दर्द नेशनल बॉडी बिल्डर संजू का है। संजू ने हाल ही में मध्यप्रदेश को रेप्रेजेंट करते हुए बेंगलुरु में गोल्ड मेडल जीता। इसी के बाद उनका सिलेक्शन इंटरनेशनल बॉडी बिल्डिंग टूर्नामेंट में जर्मनी के लिए हुआ। पैसों का इंतजाम नहीं होने की वजह से वे जर्मनी नहीं जा सके।
जबलपुर के संजीवनी नगर में रहने वाले बॉडी बिल्डर संजू के पिता मजूदर हैं। बड़ा भाई ऑटो चलाता है, सबसे छोटा प्राइवेट जॉब करता है। खुद संजू सुबह एक जिम में ट्रेनिंग देते हैं और फिर दिन भर ऑटो चलाते हैं।
आगे उन्हीं से जानते हैं…
मुझे शौक था कि बॉडी बिल्डिंग करना है, पर इस बीच गरीबी सामने आ गई, न ही आराम करने को मिलता था और न ही अच्छी डाइट मिलती थी। घर पर जो रूखा-सूखा मिल जाता था, वही खाकर जिम जाना शुरू किया।
कड़ी मेहनत और गुरु के आशीर्वाद ने कुछ ही सालों में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता तक पहुंचा दिया। जल्द ही इंटरनेशनल टूर्नामेंट में जाने का मौका भी मिला, पर इतने पैसे नहीं हो पाए कि मैं जर्मनी तक जा सकता। जर्मनी जाने का खर्च एक से डेढ़ लाख रुपए तक हो रहा था।
मुझे जर्मनी भेजने के लिए मेरे माता-पिता, भाई और गुरु ने बेहद प्रयास किया, पर उतने रुपए नहीं जोड़ पाए, जितनी की जरूरत थी। ऐसे में अब मुझे मलाल है कि अगर काश मेरे पास रुपए होते, तो आज जर्मनी में मैं भारत का नाम रोशन कर रहा होता।
जिला प्रशासन और राज्य सरकार अगर मुझे आर्थिक मदद करती है, तो फिर आने वाले समय में मैं और मेहनत करते हुए मध्यप्रदेश और भारत का नाम विदेश में रोशन करूंगा।
संजू लोधी की मां को भी इस बात का दुख है कि उनके बेटे ने मेहनत करते हुए राष्ट्रीय स्तर तक जाकर मध्यप्रदेश और जबलपुर का नाम रोशन किया है, पर पैसों के अभाव में जर्मनी ना जा पाया। संजू की मां गया बाई लोधी बताती हैं कि गरीब होने के बावजूद भी हम लोगों ने कभी उसके लक्ष्य के आगे आने की कोशिश नहीं की। जितना हम लोग से बना हमने संजू का उतना सपोर्ट किया है। पैसे की कमी हमेशा से ही हमारे बेटे के सामने आती रही। हमारी परिस्थितियां इतनी खराब थी कि हम चाह कर भी संजू को जर्मनी नहीं भेज पाए।
कोच को भी मलाल
संजू के कोच रोक्शन भी बॉडी बिल्डर हैं। उन्होंने संजू को अपने जिम में शुरू से ही प्रैक्टिस करवाई है। रोक्सन ने उसे जर्मनी भेजने के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर कुछ रुपए भी इकट्ठे किए, पर वह भी कम पड़ गए। संजू के माता-पिता के साथ उनके गुरु रोक्सन को भी इस बात का दुख है उनके द्वारा तैयार किया गया एक अच्छा खिलाड़ी पैसों के अभाव में इंटरनेशनल टूर्नामेंट में शामिल नहीं हो पाया।