इंसान तो अपनी भूख किसी तरह मिटा लेता है, लेकिन सड़क पर घूमते उन बेजुबान और बेसहारा जानवरों का क्या जो कई दिन और रातों तक भूखे रहते हैं। खाने के लिए इन्हें दर-दर भटकना पड़ता है। इन्हें खाने के लिए ना भटकना पड़े और हर दिन ये भूंखे नहीं भरपेट सोयें इसी सोच के साथ प्रतिदिन जानवरों के खाने का जिम्मा उठाया है बैकुंठ आश्रम ने।
लश्कर चिटनिस की गोठ क्षेत्र में स्थित बैकुंठ आश्रम के सेवादार पिछले 71 वर्षों से अपने गुरु के आदेश पर लगातार शहर, शहर के आसपास व बाहर जाकर प्रतिदिन पंछियों और जानवरों को भोजन करा रहे हैं। शहर में प्रतिदिन निश्चित स्थान और निश्चित मार्ग पर सेवादारों द्वारा रोटी, पाव, टोस्ट व पंछियों को दाना खिलाया जाता है। ये सेवा प्रतिदिन बिना रुके चलती है। आश्रम से जुड़े भागचंद कुंदवानी बताते हैं कि ये सेवा सब के सहयोग से चलती है। हमारे सेवा मंडल में 90 सदस्य हैं। जिसमंे से 25 से 30 सदस्य प्रतिदिन सेवा में रहते हैं, जो निश्चित स्थानों पर जाकर जानवरों व पंछियों को भोजन कराते हैं। जिसमें रॉक्सी टॉकीज से लेकर शीतला माता मंदिर मार्ग के सभी पंछी और जानवर, कैंसर पहाड़ी, लक्ष्मण तलैया, तिघरा, देव खो व शहर के अंदर एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर पंछियों को दाना खिलाया जाता है। खाने में प्रतिदिन तकरीबन 500 रोटी, सौ पैकेट पाव, 35 पैकेट टोस और 75 किलो दाना लगता है। खाने में लगने वाली रोटियां आश्रम से जुड़ी सेवादार महिलाओं द्वारा घर से बनाकर लाई जाती हैं। सेवादारों द्वारा माह में चार दिन शनिवार, रविवार, सोमवार और मंगलवार को चित्रकूट परिक्रमा मार्ग व अनसुईया आश्रम क्षेत्र में बंदरों व पंछियों को भोजन कराया जाता है। दो दिन के भोजन में यहां एक क्विंटल चना और डेढ़ क्विंटल आटे की बनी रोटी और 100 पैकेट पाव के भोजन में रहते हैं।
वर्षों पुराना है आश्रम: बैकुंठ आश्रम लश्कर क्षेत्र में चिटनिस की गोठ में स्थित है। यहां के गुरुदेव ब्रह्मचारी आतमदास महाराज का जन्म 1912 में हुआ था। उन्होंने मात्र 11 वर्ष की आयु में ही सन्यास ले लिया था और 2001 में बृह्मलीन हो गए। गुरुदेव शुरू से ही जीवों की सेवा की प्रेरणा आश्रम पर आने वाले सदस्यों और लोगों को देते थे। उन्हीं के आदेश पर 1950 से बेसहारा भूखे जानवरांे व पंछियों को खाना खिलाने का काम आश्रम के सेवादारों द्वारा किया जा रहा है।