गुरु-शिष्य के त्योहार गुरु पूर्णिमा बुधवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। आश्रमों व मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा। कोरोना के दो साल में कहीं भी सामूहिक आयोजन नहीं हुए थे, जो बुधवार को हुए। कई जगहों पर गुरुओं ने अपने शिष्यों के लिए भोजन प्रसादी भी रखी थी। दो साल से कोरोना की दहशत के चलते सभी सामूहिक आयोजनों पर प्रशासन ने रोक लगा रखी थी। गुरु और शिष्य का पर्व गुरु पूर्णिमा का महापर्व नहीं मनाया जा रहा था। इस बार हालात सामान्य हैं, जिसके चलते बुधवार को धूमधाम से पर्व मनाया गया। सुबह से शहर में गतिविधियां तेज थीं। नौकरीपेशा शिष्य अपने गुरु का पूजन व आशीर्वाद लेने के लिए सुबह से आश्रम पहुंचने लग गए थे। बकायदा हार-फूल के साथ उपहार भी लेकर पहुंचे। गुरुओं ने भी सफल होने का आशीर्वाद दिया। शहर में बड़े पैमाने पर कई आयोजन हुए। 12 वर्ष बाद आषाढ़ी पूर्णिमा पर देवगुरु वृहस्पति स्वराशि मीन में मंगलकारी केंद्र योग बने। कई आश्रमों में गुरु पूजन के साथ 56 भोग या महाप्रसादी का आयोजन भी रखा गया।
राजधानी में स्थित आदर्श योग एवं आध्यात्मिक केंद्र में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साधकों ने सामूहिक योग साधना करते हुए सभी के लिये स्वास्थ्य एवं शांतिमय प्रसन्न जीवन के लिये प्रार्थना की एवं गुरुजनों का सम्मान किया। योग गुरु महेश अग्रवाल ने गुरु-शिष्य के संबंध के बारे में बताया कि जीवन की विविध वस्तुओं को समझने के लिए मनुष्य ने विभिन्न तरीकों से अपने आपको अभिव्यक्त किया है। भक्ति, करुणा, सरलता आदि श्रेष्ठ मानवीय गुणों की अनुभूति के लिए उसने स्वयं को कई रिश्तों से जोड़ रखा है, जैसे- पिता और पुत्र, पति और पत्नी, भाई और बहन आदि। भक्ति, प्रेम और दया के विविध रूपों को समझते हुए भी उसने अनुभव किया कि अपनी पूर्णता के लिए उसे कुछ और चाहिए। इसलिए संत-महात्माओं ने दो व्यक्तियों के बीच एक भवातीत संबंध को प्रकट किया और वह है- गुरु और शिष्य का संबंध। यह संबंध इंद्रियों, भावनाओं और मन की सीमाओं के भीतर नहीं है। जिस प्रकार पति-पत्नी अपनी भावनाओं का परस्पर आदान प्रदान करते हैं, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य के साथ अपने ज्ञान, प्रेम और प्रकाश का आदान-प्रदान करता है। इस अवसर पर प्रमुख रुप से डा. नरेंद्र भार्गव, समाजसेवी सुरेंद्र तिवारी, श्याम बोहरे, सुरेखा चावला, शिप्रा जैन, ज्योति नायक, गीतांजलि सक्सेना, सुनीता जोशी सहित योग साधक उपस्थित रहे।
गुरु और शिष्य के बीच का संबंध विशिष्ट
योगगुरु ने कहा कि गुरु और शिष्य के बीच का संबंध विशिष्ट होता है। जैसे हनुमान जी को अपनी महाशक्ति का स्मरण नहीं था और राम ने प्रत्यक्ष होकर उन्हें उनके आश्चर्यजनक कार्यों की याद दिलाई। उसी प्रकार गुरु शिष्य को बोध देता है कि तुम मात्र हड्डी और मांस के पुतले नहीं हो। इस स्थूल शरीर के पीछे, इन सम्पूर्ण न्यूनताओं, अविद्या पूर्ण विचारों और कार्यों के पीछे चेतना शक्ति है, चैतन्य आत्मा है और वह शक्ति है- प्रकाश, जो हर मनुष्य के जीवन में विद्यमान है। इस अवसर पर साधकों ने योग साधना कर गुरु पूर्णिमा महोत्सव मनाया।
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