गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की रणनीति को नाकाम करने में जुटा भारत

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हाल ही में पाकिस्तान की ओर से गुलाम कश्मीर में कराए गए चुनाव में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी को भले ही बहुमत हासिल हुआ हो, लेकिन भारत सरकार ने इस चुनाव को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। भारत सरकार के विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता ने गुलाम कश्मीर में कराए गए तथाकथित चुनाव और साथ ही चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तर्क को भी खारिज कर दिया है। हालांकि इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारतीय उच्चायोग के एक शीर्ष राजनयिक को तलब कर गुलाम कश्मीर में हाल में संपन्न चुनावों पर भारत की टिप्पणियों को ‘खारिज’ किया है।

अब सवाल यह उठता है कि इमरान खान को गुलाम कश्मीर में चुनाव कराने की क्या जरूरत पड़ गई। दरसअल इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ जिन क्षेत्रों से विरोध के स्वर उन्हें सुनाई दिए उनसे कठोरता से निपटने की कोशिश पाक सरकार ने की है। इमरान खान को बीते दिनों गुलाम कश्मीर से निरंतर उठने वाले गंभीर विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा है। 

गुलाम कश्मीर क्षेत्र के साथ इमरान ने अन्य पाकिस्तानी क्षेत्रों के मुकाबले भेदभाव किया है। इमरान खान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कश्मीर को ध्यान में रखते हुए कुछ खास फैसले किए हैं। पिछले वर्ष इमरान सरकार ने गिलगित बाल्टिस्तान को गुलाम कश्मीर में प्रोविजनल प्रोविंशियल स्टेटस देने की घोषणा की थी। इससे पूर्व इमरान सरकार ने फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया (फाटा) का विलय खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में संविधान संशोधन के जरिये किया था, क्योंकि इस क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना के विरोधी मौजूद थे। फाटा क्षेत्र में पख्तून राष्ट्रवाद की लहर व्याप्त रही है जिसके चलते वहां के लोग अपने लिए नागरिक अधिकारों की मांग पाक सरकार से करते रहे हैं।

लेकिन पाक सरकार ने इस क्षेत्र की स्वायत्तता, राष्ट्रवादी मानसिकता को खत्म कर उसे पाकिस्तान के एक पूर्ण राज्य में विलय कर उसके अर्धस्वायत्त जनजातीय क्षेत्र की पहचान को खत्म कर दिया। पाक ने बीते साल गिलगिट-बाल्टिस्तान में भी विधानसभा चुनाव कराया था, जिसका भारत ने विरोध किया था।

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पाकिस्तान की सक्रियता के कारण : गुलाम कश्मीर की जनता पाकिस्तानी सेना की ओर से जबरन भूमि कब्जे, इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव, भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी, आइएसआइ द्वारा लोगों पर छापेमारी से त्रस्त रही है। यहां सर्वाधिक बिजली बनने के बावजूद लोगों को पर्याप्त बिजली आपूíत नहीं होती और उसे बाहर बेच दिया जाता है। गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ खुलकर प्रदर्शन होते रहे हैं और सामाजिक कार्यकर्ता भारत तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की मांग करते रहे हैं। 

गुलाम कश्मीर में पिछले साल एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार तनवीर अहमद ने पाकिस्तानी झंडा उतार दिया था जिसके बाद उसे सुरक्षा एजेंसियां उठा कर ले गईं। महंगाई से जुड़े विरोध प्रदर्शनों पर गुलाम कश्मीर में स्थानीय नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश पाकिस्तान द्वारा दिए गए। इन सब कारणों से वहां स्थानीय लोगों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पों का दौर शुरू हो चुका है। गुलाम कश्मीर क्षेत्र में कश्मीरी छात्र संगठनों ने भी पाक सेना का विरोध करना शुरू कर दिया है। गुलाम कश्मीर में इमरान खान की पार्टी की सरकार बनने से अब वहां चीन की परियोजनाओं के खिलाफ आवाजें उतनी आसानी से नहीं उठ पाएंगी, क्योंकि इमरान चीन को स्वाभाविक मित्र मानते हुए उसके हक में काम करने को आमादा हैं।

जम्मू कश्मीर के संबंध में भारत सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षो के दौरान की गई विभिन्न पहल और उन पर अमल को पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर पाया है। भारत द्वारा पाकिस्तान में सर्जकिल स्ट्राइक करना, सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र का दर्जा वापस लेना, अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करना, जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन करते हुए लेह लद्दाख की प्रशासनिक स्थितियां बदल देना, जम्मू कश्मीर के परिसीमन के लिए सक्रिय होना, मीरपुर मुजफ्फराबाद को भारत के नक्शे में दिखाना, गुलाम कश्मीर क्षेत्र में परिसीमन के लिए मांग करना आदि न जाने ऐसे कितने उदाहरण हैं जिससे पाकिस्तान को लगातार यह भय बना रहा है कि गुलाम कश्मीर में भारत कोई ऐसा मास्टर स्ट्रोक न खेल दे ताकि पाक के सभी नापाक मंसूबे धरे के धरे रह जाएं। लद्दाख में जिस तरह अवसंरचनाओं के विकास का काम भारत द्वारा किया जा रहा है उससे चीन और पाकिस्तान दोनों ये सोचने लगे हैं कि गिलगित बाल्टिस्तान से गुजरने वाले चीन पाक आíथक गलियारे का भविष्य क्या होगा? भारत की रणनीति भी है कि गुलाम कश्मीर क्षेत्र के पास ऐसा विकास कार्य हो जिससे वहां की जनता यह सोचने को विवश हो जाए कि हम भी ऐसे ही सुशासन के हकदार हैं, न कि पाकिस्तान की ज्यादती के। पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर या बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों को हमेशा भारत विरोध की प्रयोगशाला के रूप में ही अधिक इस्तेमाल कर इन क्षेत्रों के साथ ठीक वैसा ही भेदभावमूलक बर्ताव किया जैसा उसने पिछली सदी के सातवें दशक तक पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के साथ किया था।

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