चीन के बदलने लगे सुर, ब्रिक्स की मेजबानी का समर्थन किया, जिनपिंग आ सकते हैं भारत

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नई दिल्ली : सीमा विवाद के चलते पिछले 11 महीनों में नई दिल्ली और बीजिंग के संबंधों में खटास आई है। पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाली जगहों से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद दोनों देशों के रिश्ते में एक नई शुरुआत देखने को मिल रही है। दरअसल, चीन ने इस साल ब्रिक्स सम्मेलन की भारत की माजेबानी का समर्थन किया है। चीन ने सोमवार को कहा कि वह विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत और अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। 

भारत आ सकते हैं शी जिनपिंग
समझा जाता है कि कोरोना महामारी की स्थिति यदि अगले कुछ महीने में सुधरी तो जून महीने के बाद ब्रिक्स सम्मेलन में शरीक होने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की यात्रा पर आ सकते हैं। चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि उनका देश ब्रिक्स के सहयोग तंत्र को काफी महत्व देता है और सदस्य देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाने की उसकी हमेशा कोशिश रही है। वह चाहता है कि ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग एवं एकजुटता और मजबूत हो। 

ब्रिक्स देशों में सहयोग बढ़े-चीन
इस सवाल के जवाब में क्या ब्रिक्स सम्मेलन पर सीमा विवाद का साया होगा, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग येनबिन ने कहा, ‘इस साल भारत में ब्रिक्स सम्मेलन के आयोजन का चीन समर्थन करता है। बीजिंग, नई दिल्ली और ब्रिक्स के अन्य देशों के साथ काम करने के लिए तैयार है। हम चाहते हैं कि ब्रिक्स देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में संवाद और सहयोग पहले से ज्यादा मजबूत हो। ब्रिक्स के देशों को आर्थिक, राजनीतिक एवं मानविकी में अपना सहयोग और बढ़ाना चाहिए।’

जयशंकर ने लान्च की ब्रिक्स वेबसाइट
साल 2021 के लिए ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता भारत को मिली है। इसे देखते हुए इस सम्मेलन का आयोजन भारत में होना तय है। गत 19 फरवरी को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नई दिल्ली स्थित सुषमा स्वराज भवन स्थित ब्रिक्स सचिवालय में ब्रिक्स 2021 की वेबसाइट लान्च की। समझा जाता है कि सीमा पर तनाव कम होने से भारत और चीन के रिश्ते दोबारा पटरी पर आना शुरू होंगे। 

भारत के कड़े रुख के बाद पीछे हटा चीन
कुछ दिनों पहले मास्को की यात्रा पर पहुंचे विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने कहा कि सीमा पर यदि तनाव जारी रहेगा तो इसका असर द्विपक्षीय रिश्ते पर पड़ना तय है। सीमा पर भारत की आक्रामक तैयारी और जुझारूपन के बाद चीन अपनी फौज पीछे करने पर राजी हुआ। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह अपनी एक इंच जमीन से समझौता नहीं करेगा।   

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