जस्टिस वर्मा को नहीं मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत…कहा जांच प्रक्रिया और चीफ जस्टिस की सिफारिश सही

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट से कैश एट होम मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा को राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इन-हाउस जांच को वैधानिक स्वीकृति प्राप्त है। जांच प्रक्रिया संवैधानिक था और राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना और सिफारिश भेजना असंवैधानिक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है, तो वे वहां अपने तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं।

रिट याचिका को खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा दायर उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने इन-हाउस जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी। इस रिपोर्ट में उन्हें ‘कैश-एट-होम’ में दोषी ठहराया गया था। इसके साथ ही उन्होंने उस सिफारिश को भी चुनौती दी थी जो तत्कालीक जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए उन पर महाभियोग चलाने की सिफारिश भेजी थी।

30 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने इस मामले में जस्टिस वर्मा की अर्जी पर सुनवाई के बाद 30 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था। फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि जस्टिस वर्मा ने पहले तो इन-हाउस जांच में भाग लिया और बाद में उसी समिति की वैधता को चुनौती दी। हालांकि रिट याचिका को विचार योग्य न मानते हुए भी, संविधानिक महत्व के कारण बेंच ने पांच अन्य मुद्दों पर निर्णय दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच मुद्दों पर अपना फैसला दिया

सुप्रीम कोर्ट ने जिन पांच मुद्दों पर अपना फैसला दिया उसमें पहला मुद्दा यह था कि क्या इन-हाउस जांच को वैधानिक स्वीकृति प्राप्त है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हां, इस प्रक्रिया को वैधानिक स्वीकृति प्राप्त है। दूसरा सवाल यह था कि क्या यह जांच और रिपोर्ट संविधान से इतर समानांतर व्यवस्था है? सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर कहा कि नहीं, यह समानांतर या असंवैधानिक प्रक्रिया नहीं है।

तीसरा सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने यह था कि क्या इन-हाउस प्रक्रिया की धारा 5B संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 का उल्लंघन करती है या किसी हाईकोर्ट न्यायाधीश के मूलभूत अधिकारों का हनन करती है? सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर जवाब ना में कहा।

अगला सवाल यह था कि क्या प्रधान न्यायाधीश (CJI) या उनकी गठित समिति ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया, सिवाय एक बिंदु के जिसमें कि SC वेबसाइट पर वीडियो और फोटो अपलोड का मसला। यह कहा गया कि ऐसा करना आवश्यक नहीं था, और न ही याचिका में इसके खिलाफ कोई राहत मांगी गई थी। आखिरी सवाल यह था कि क्या प्रक्रिया की धारा 7(2), जिसमें CJI द्वारा रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भे

यह भी कहा गया कि रिपोर्ट भेजने से पहले जस्टिस वर्मा को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का अवसर देना प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। यदि किसी अन्य मामले में किसी अन्य न्यायाधीश को यह अवसर दिया गया, तो इससे याचिकाकर्ता को ऐसा अधिकार नहीं मिल जाता। इसके अलावा बेंच ने यह स्पष्ट किया कि यदि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है, तो वे वहां अपने तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं।

इसी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता मैथ्यूज़ जे. नेडुमपारा द्वारा दायर एक और रिट याचिका, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी (कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग और झूठे शपथ-पत्र देने के आधार पर), उसे भी खारिज कर दिया गया।

जस्टिस वर्मा का नाम ‘XXX’ के रूप में गुप्त रखा गया

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने जस्टिस वर्मा की ओर से पक्ष रखा। याचिका में जस्टिस वर्मा का नाम ‘XXX’ के रूप में गुप्त रखा गया था। सिब्बल ने तर्क दिया कि किसी भी न्यायाधीश को केवल अनुच्छेद 124(4) के तहत “सिद्ध मिसविहेवियर” या “असमर्थता” के आधार पर ही हटाया जा सकता है, और CJI की सिफारिश के आधार पर महाभियोग की शुरुआत असंवैधानिक है। इस पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि इन-हाउस प्रक्रिया केवल एक प्रारंभिक आंतरिक जांच है, जिसकी रिपोर्ट को सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, और ऐसे में इस स्तर पर याचिकाकर्ता को कोई शिकायत का आधार नहीं है।

मामला उस समय का है जब 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के एक हिस्से में आग लगने पर, दमकल कर्मचारियों को वहाँ बड़ी मात्रा में नकदी मिली। यह मामला सार्वजनिक रूप से गंभीर विवाद का कारण बना, जिसके बाद तत्कालीक CJI संजीव खन्ना ने तीन न्यायाधीशों की इन-हाउस जांच समिति गठित की। इस दौरान जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया और उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया। समिति ने मई में अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपी थी। और फिर तत्कालीन चीफ जस्टिस ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश राष्ट्रपति और पीएम से की थी।

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