चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को जिला मुख्यालय सहित अन्य ग्रामीण अंचलों में महाराष्ट्रीयन हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा गुड़ी पाड़वा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जहां महाराष्ट्रीयन परिवारों ने घरोंन- घर गुड़ी लगाकर पूर्ण विधि-विधान के साथ विशेष पूजा अर्चना की। वही एक दूसरे को गुड़ी पाड़वा पर्व की बधाईयां दी। इस पर्व विशेष को मनाने का लोगों में खासा उत्साह देखा गया। जहां उन्होंने घरों में गुड़ी पड़वा लगाकर नए वर्ष का स्वागत किया ।जिसकी शुरुआत 09 अप्रैल सूर्य उदय के पूर्व से की गई जहां सूर्योदय के पूर्व ही लोग अपने घरों की सफाई की वही स्नान कर नए वस्त्र धारण कर,घरों में आकर्षक रंगोली बनाई ,वही आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधने के बाद घर के आगे या छत पर एक झंडा लगाया और एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा गया।वही उस गुढी में आम ,नीम के पत्ते की माला,मिस्ठान स्वरूप गाठिया माला सहित अन्य मिष्ठान गुड़ी में लगाकर विशेष पूजा अर्चना की। इस दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों ने सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा एवं मंत्रों का जप भी किया।जहां घर-घर पूजा अर्चना के बाद परिवार जनों ने अपने मित्रों सामाजिक बंधुओं और धार्मिक बंधुओं सहित अन्य को गुड़ी पाड़वा पर्व और हिंदू नूतन वर्ष की शुभकामनाएं दी। जहां शुभकामनाओं का दौर सुबह से लेकर देर रात तक चलता रहा।आपको बताए कि यह पर्व महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल खास तौर पर मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन महिलाएं घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। माना जाता है कि घर में गुड़ी लगाने से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं। घर में सुख समृद्धि आती है
ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी।
हमारे देश में कई तरह के धार्मिक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं उत्सवों में से एक है गुड़ी पड़वा। गुड़ी पड़वा एक ऐसा पर्व है, जिसकी शुरुआत के साथ सनातन धर्म की कई सारी कहानियां जुड़ी हैं। तिथि के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा को मानाने के पीछे कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के ही दिन सतयुग की भी शुरुआत हुई थी। इसलिए इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वहीं पौराणिक मान्यता के अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन प्रभु श्रीराम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया था। इसके अलावा अन्य धार्मिक मान्यताओं के तहत इस पर्व को मनाया जाता है।
विजय पताका का प्रतीक है गुढी
मान्यता है कि वीर मराठा छत्रपति शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया था। इसी के बाद मराठी लोग प्रत्येक वर्ष इस परंपरा का पालन करते हैं। इस दिन घर में गुड़ी को विजय पताका के प्रतीक रूप में भी लगाया जाता।
ये नूतन वर्ष की शुरुवात है-
पर्व विशेष को लेकर की गई चर्चा के दौरान महिलाओं ने बताया कि गुड़ी पाड़वा का यहां पर्व खासतौर पर महाराष्ट्र केरल और कर्नाटक में मनाया जाता है। वही जिले में भी इन राज्यों से जुड़े लोग इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ हर साल मनाते हैं ।इस पर्व से ही हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है जिसको लेकर विशेष पूजा अर्चना की जाती है ।