डिंडौरी में प्राकृतिक जल स्रोत को सहेजा तो दूर हो गई पानी की किल्लत

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डिंडौरी के एक सुदूर गांव में पहाड़ी के ऊपर बसे आदिवासी वनग्राम में जब हैंडपंप और कुएं के सहारे प्यास बुझाना नामुमकिन हुआ तो गांव के प्राकृतिक जल स्रोत झिरिया को ही सहेजकर वर्षों से चली आ रही पानी की समस्या का स्थाई समाधान कर दिया गया। चारों ओर घने जंगल से घिरे और छत्तीसगढ़ सीमा में बसे नक्सल प्रभावित गांव में अब शुद्ध पानी घर-घर पाइप लाइन से पहुंच रहा है। इस पूरी कार्ययोजना में पानी सप्लाई के लिए बिजली की मोटर भी नहीं लगाई गई। झिरिया के पानी को ऊंचाई वाले स्थान में फिल्टर कर पाइप लाइन के सहारे घरों तक पहुंचाया जा रहा है।

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भीषण गर्मी में भी नहीं सूखती झिरियां : डिंडौरी जिले के करंजिया विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत चकमी के 53 परिवार वाले वन ग्राम कपौटी में निवसिड संस्था और ग्रामीणों के प्रयास से प्राकृतिक जल स्त्रोत झिरिया को सहेजकर वर्षों से चली आ रही पानी की समस्या को दूर कर दिया गया। संस्था के पदाधिकारियों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर इस काम को अंजाम दिया। निवसिड संस्था में कम्यूनिटी मोबलाइजर गणेश सुरेश्वर बताते हैं कि वर्ष 2017 में वे कपौटी ग्राम में पानी की समस्या का सर्वे करने आए थे। तब उन्‍होंने देखा था कि यहां के ग्रामीण वर्षभर अपनी प्यास बुझाने के लिए जंगल किनारे प्राकृतिक जल स्रोत झिरिया पर ही आश्रित हैं। यह एक ऐसा प्राकृतिक जल स्रोत है जो भीषण गर्मी के दिनों में भी नहीं सूखता था। गांव में भूजल स्तर आठ सौ से एक हजार फीट नीचे होने के चलते ग्रामीण झिरिया का ही गंदा और मटमैला पानी पीने मजबूर थे। गांव में जलस्तर काफी नीचे होने से ग्रामीणों का प्यास बुझाने का एक मात्र मुख्य साधन सर्वे में झिरिया ही सामने आया। फिर क्या था, सभी ने मिलकर झिरिया का पानी ही घर-घर पहुंचाने की ठान ली। गांव के हालात उस समय यह थे कि यहां इंसानों के साथ पालतू पशु एक ही स्थान से पानी पीने थे। दूषित पानी पीने के कारण यहां के लोग उल्टी-दस्त के साथ जलजनित बीमारियों की चपेट में आसानी से आ जाते थे।

ग्रामीणों के साथ बैठक कर बनी कार्ययोजना : ग्रामीणों के साथ बैठक कर इस विषय में पूरी कार्ययोजना तैयार की गई। छह लाख 82 हजार की सहयोग राशि के साथ सभी ग्रामीण एकजुट होकर योजना को मूर्त रूप देने में लग गए। झिरिया के पानी की लैब में जांच कराई गई तो पाया गया कि पानी पीने योग्य हैं। जंगल किनारे झिरिया को व्यवस्थित कराया गया। लगभग 50 मीटर की दूरी पर पानी फिल्टर टैंक बनाकर झिरिया के पानी को टैंक में पहुंचाने का कवायद की गई। यहीं से पाइप लाइन बिछाकर वर्तमान में पूरे गांव के गली मुहल्ले, आंगनवाड़ी, स्कूल भवन में भी स्वच्छ जल की सप्लाई की जा रही है।

पूरे गांव को मिल रहा स्वच्छ जल : 215 लोगों की आबादी वाले पूरे गांव को स्वच्छ जल अब मिलने लगा हैं। गांव के लोग जलजनित बीमारियों से अब सुरक्षित हैं। इस काम में निवसिड के साथ ग्राम के जेठू सिंह मुकद्दम, इंद्रपाल मरावी, मोती सिंह सहित अन्य लोगों ने भी आगे आकर साथ दिया। निवसिड संस्था में मप्र-छत्तीसगढ़ में सेवा देने वाले गोरखपुर निवासी मनीष गोयल ने बताया कि संस्था द्वारा ग्रामीणों को जागरूक कर प्राकृतिक जल स्रोत को सहेजा गया। अब गांव के लोग ही घर-घर पानी नल से पहुंचाने का काम कर रहे हैं। सोनवती पट्टा ने बताया कि जबसे झिरिया जल स्रोत को सहेज कर पेयजल आपूर्ति की जा रही है, तभी से ग्रामीण स्वच्छ जल का सेवन कर रहे हैं। बैगा समाज के रौनू मरावी ने बताया कि जिस झरने के पानी को पूरे गांव में भेजा जा रहा है, वह केरानार झरना के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें सालभर पानी कम नहीं होता। राधा बाई धुर्वे ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि पहले तो गंदा और मटमैला पानी पीना पड़ता था। गांव का एकमात्र हैंडपंप था वो भी बंद हो जाता था। शिवम पड़वार ने बताया कि पहले गांव में पेयजल की विकराल स्थिति थी, खासकर बरसात के दिनों में तो स्वच्छ जल मिलना मुश्किल होता था। जरा सी बारिश से जंगल से सटे झरने में बाढ़ आ जाती थी फिर पानी के साफ होने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था लेकिन अब ऐसा नहीं है।

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