नई दिल्ली : भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हालात बेहद अस्थिर बने हुए हैं। पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद से देश का लोकतांत्रिक ढांचा चरमरा गया है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार लगभग हर मोर्च पर नाकाम हो रही है। अल्पसंख्यक समुदायों पर लगातार हमले हो रहे हैं। देश में कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हो रही हैं। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर यूएन समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं चिंता जता चुकी हैं। 26 मार्च 1971 को जब बांग्लादेश ने आजादी की घोषणा की थी तो किसी को अंदाजा भी नहीं होगा कि ये देश उसे आजादी दिलाने वाले नेता शेख मुजीबुर्रहमान की पहचान तक मिटाने को आमादा हो जाएगा।
आज स्थिति यह है कि बांग्लादेश में सैन्य शासन लागू होने या आपातकाल लगने की अटकलें तेज हो गई हैं। सेना, प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच बढ़ते तनाव ने कई चिंताओं को जन्म दिया है। माना जा रहा है कि आर्मी मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के खिलाफ कदम उठा सकती है। दूसरी तरफ बांग्लादेश से निकलने के बाद शेख हसीना भारत में हैं। केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें सुरक्षित पनाह दी गई है। हालांकि, बांग्लादेश की तरफ से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की जा रही है लेकिन भारत ने इस मांग पर कोई खास तव्वज्जो नहीं दी है।