एक बार फिर 20 साल के हिंसक संघर्ष के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) अब तालिबान (Taliban) की चपेट में है। रविवार (15 अगस्त) को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के एक प्रवक्ता ने युद्ध समाप्त की घोषणा की। वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ शांतिपूर्ण संबंधों का आह्रान किया। इधर हजारों लोग पलायन को मजबूर हो गए हैं। वहीं राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) देश छोड़कर भाग गए । अमेरिका के औपचारिक रूप से हटने के बाद तालिबान ने देश पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है। वहीं अधिग्रहण के कुछ दिनों बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) ने अफगानिस्तान को मिलने वाले 460 मिलियन अमरीकी डॉलर को रोक दिया है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग (U.S. Treasury Department) सहित इंटरनेशनल समुदाय के बढ़ते दबाव के बीच आईएमएफ (IMF) ने यह निर्णय लिया है।
आखिरकार तालिबान कैसे पैसा कमाता है और अपने खजाने को भरता है। इस बारे में एक जिज्ञासा अब चर्चा का एक और विषय बन गया है। क्योंकि अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो की सैन्य उपस्थिति के दो दशकों के बाद भी तालिबान बिल्कुल कमजोर नहीं हुआ है। उनका खात्मा को काफी दूर की बात है। अगर कुछ हुआ है, तो यह है कि विद्रोहियों का समूह पहले की तुलना में अधिक समृद्ध और शक्तिशाली हो गया है।
तालिबान कितना अमीर है और कौन फंड करता है?
रिपोर्ट्स के अनुसार तालिबान के पास 2.3 बिलियन डॉलर का फंड है। जिसमें लाखों रुपए की राशि ड्रग्स, दान, वसूली, अवैध खनन और रियल एस्टेट से मिलता है। तालिबान को सालाना 1.5 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई होती है। यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम के काबुल कार्यालय के प्रमुख सीजर गुड्स ने हाल ही में समाचार एंजेसी रॉयटर्स को बताया है कि तालिबान ने अफीम व्यापार को अपनी आय के मुख्य स्त्रोतों में शामिल किया है।
नाटो की एक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने हाल के वर्षों में अवैध नशीली दवाओं के व्यापार, अवैध खनन और निर्यात से बढ़े हुए मुनाफे के माध्यम से अपनी वित्तीय शक्ति का विस्तार किया है। रिपोर्ट का अनुमान है कि समूह ने अपने पिछले वित्तीय वर्ष (मार्च 2020) में 1.6 बिलियन डॉलर की कमाई की है।
पत्रकार लिन ओ डॉनेल ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में अलर्ट किया था। उन्होंने लिखा था कि जब तक वैश्विक कार्रवाई नहीं की जाती है, तालिबान एक बेहद धनी संगठन बना रहेगा। वहीं जून 2021 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुसार तालिबान की वित्तीय सहायता में ज्यादातर अमीर व्यक्तियों से दान और गैर-सरकारी चैरिटी फाउंडेशन से आती है।
यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के वित्तपोषण के प्राथमिक स्त्रोत आपराधित गतिविधियां हैं। जिनमें मादक पदार्थों की तस्करी और अफीम उत्पादन, जबरन वसूली, अपहरण, खनिज और तालिबानन के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में टैक्स वसूली शामिल है।
अफगान अधिकारियों के अनुसार सभी खनन क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण केवल 281 तक बढ़ा है, जो 16 प्रांतों में स्थित थे। 12 प्रांतों में 148 क्षेत्र स्थानीय सरदारों के नियंत्रण में थे, जबकि तालिबान का मूल्यांकन 26 प्रांतों में फैले शेष 280 क्षेत्रों पर अधिकार था। तालिबान ने सीधे अपने नियंत्रण में खनन से आय प्राप्त की है। वहीं इसकी सटीक जानकारी नहीं है कि कितनी वास्तविक खदानें सरकारी नियंत्रण में नहीं है।
कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में तालिबान ने टैक्स लागू किया था। जिसे उशर कहा जाता है। सितंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया था कि यह टैक्स फसल पर 10 प्रतिशत और धन पर 2.5 प्रतिशत था।