अमेरिकी संसद ने महामारी के दौरान छोटी कंपनियों के कर्मचारियों को वेतन के लिए अरबों की मदद को मंजूरी दी थी। लेकिन, यह मदद छोटे कारोबारियों तक नहीं पहुंच रही थी। इस बीच दो छोटी कंपनियां सामने आईं। उन्होंने टेक्नोलॉजी के सहारे उस अवसर को भुनाया जिसे बड़े बैंकों ने गंवा दिया। उन्होंने अपने काम के लिए 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक फीस कमाई है।
महामारी से पहले तो एक कंपनी ब्लूकॉर्न का अस्तित्व ही नहीं था। दस साल पहले बनी दूसरी कंपनी वोमप्ली मार्केटिंग सॉफ्टवेयर बेचती थी। इस साल दोनों कंपनियां छोटे कारोबारों के लिए अमेरिकी सरकार के लगभग छह लाख करोड़ रुपए के पेचैक प्रोटेक्शन प्रोग्राम का चमकीला सितारा बनकर उभरी हैं। दोनों कंपनियों ने इस साल दिए गए सभी सरकारी राहत ऋणों में से करीब 35% की प्रोसेसिंग की है।
ब्लूकॉर्न और वोम्पली बैंक नहीं है इसलिए वे कर्ज नहीं दे सकती हैं। उन्होंने बिचौलिए की भूमिका निभाई। आक्रामक विज्ञापन अभियान के जरिये छोटे कारोबारियों को अपनी वेबसाइट के माध्यम से कर्ज के आवेदन देने के लिए आकर्षित किया। बदले में उन्होंने हर ऋण पर भारी फीस कर्ज देने वाली एजेंसियों, कंपनियों से हासिल की है।
बड़े बैंकों और कर्जदाताओं ने बड़े कारोबारियों को बड़े ऋण देने पर ध्यान दिया क्योंकि इनसे अधिक पैसा आसानी से कमाया जा सकता है। जेपी मोर्गन चेज बैंक ने तो 75 हजार रुपए तक के कर्ज देने से इनकार कर दिया था।