निर्यात बढ़ने से सूती कपडों में महंगाई का रुख साड़ियां, टावल, लट्ठा सब हुए महंगे

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निर्यात बढ़ने तथा कपास का उत्पादन कम होने से सूती कपडे के कारोबार में महंगाई का रुख बना हुआ है। सूती कपडा महंगा होने से कारोबार पर भी असर पड़ा है। व्यापारियों की माने तो थोक बाजार में टर्नओवर 30 फीसदी तक कम हुआ है। लोग अब जरूरत का कपड़ा ही खरीद रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में काटन कपड़े की मांग में गिरावट आई है।कुछ पहले कच्चे तेल के दाम में अचानक उछाल आने से कपड़े के दाम बढ़े थे। इसके बाद ग्रे और यार्न के दाम बढ़ गए। कपड़े पर दोहरी मार पड़ी। सूती कपड़ा 40 फीसद तक महंगा हो गया। इसी बीच कच्चे तेल के दाम में कुछ कमी होने से कुछ राहत मिली लेकिन अब कपास का उत्पादन कम होने और विदेशों से मांग निकलने से घरेलू बाजार में सूती कपड़ा महंगा हो गया। बैरागढ़ में थोक कपड़ा मंडी है। व्यापारियों के अनुसार पिछले साल की अपेक्षा अब भी सूती कपड़ा 20 से 25 फीसद महंगा है। व्यापारियों का पुराना स्टाक खत्म हो चुका है। ऐसे में ग्राहक को महंगा कपड़ा ही मिल पा रहा है।कपड़ा व्यापारियों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में सूती कपड़े की मांग अधिक रहती है। दाम बढ़ने से मांग अचानक कम हो गई है। सूती साड़ियां कम बिक रही हैं। टावल, चादरें, लठ्ठा, दोहर रजाई के कवर जैसी वैरायटी पर भी महंगाई पर मार पड़ी है। पर्दा क्लाथ एवं ओढ़ने की चादरें भी महंगी हो गई हैं। ग्रीष्मकाल में सूती कपड़े की मांग बहुत रहती है लेकिन इस बार महंगाई के कारण कारोबार कम हो गया। कपड़ा संघ के पूर्व अध्यक्ष वासुदेव वाधवानी के अनुसार करीब 30 फीसद तक बिक्री कम हुई है। वर्तमान में मांग लगातार कम हो रही है।सूती कपड़ा भिवंडी एवं इचलकरंजी से आता है। कच्चे माल का दाम बढ़ने से सामान्य कपड़ा भी महंगा हो गया है। कपड़े पर पांच फीसद जीएसटी है। यह भार भी आखिरकार ग्राहक पर ही आता है। थोक कपड़ा व्यापारी वासुदेव वाधवानी का कहना है कि कपड़े की सभी वैरायटी के दाम बढ़े हैं, लेकिन सूती कपड़े पर महंगाई की मार अधिक पड़ी है। महंगा होने के कारण बिक्री कम हो गई है। इस साल टर्नओवर 30 फीसदी कम होने की आशंका है।

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