आपने सुना होगा कि शहरों के नीचे नदियां होती हैं, लेकिन रीवा ऐसा पहला शहर होगा, जिसके नीचे पानी की सुरंगें होंगी। इसे वॉटर टनल कहा जाता है। रीवा के तराई अंचल और पहाड़ी इलाकों में पानी पहुंचाने के लिए त्योंथर टनल और बहुती टनल का काम अंतिम चरण में है। पहाड़ियों को हैवी मशीनरी से काटकर टनल को बनाया गया है। इन टनल से न सिर्फ पीने के पानी की समस्या खत्म होगी, बल्कि किसानों की जमीन को भी भरपूर पानी मिलेगा।
65 हजार हेक्टेयर में खेती कर रहे 3 लाख किसानों को फायदा
विंध्य में रीवा और सतना के किसानों को नए साल के बाद बड़ी खुशखबरी मिलने वाली है, क्योंकि बाण सागर बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना के तहत बहुती नहर परियोजना का सबसे अहम काम पूरा हो गया है। बाणसागर बांध (Bansagar Dam) का पानी बहुती नहर परियोजना (Bahuti Canal) में पहुंचाने के लिए छुहिया घाटी गोविंदगढ़ में बनाई जा रही वॉटर टनल का काम पूरा हो चुका है।
अब महज 6 महीने के भीतर ही इससे वॉटर सप्लाई शुरू हो जाएगी। इस परियोजना से रीवा की पांच तहसीलों और सतना की दो तहसीलों के 65 हजार हेक्टेयर में खेती कर रहे 3 लाख किसानों को फायदा मिलेगा। इतना ही नहीं, नई टनल बनने से नलों में वॉटर प्रेशर भी ठीक से आएगा।
अब जान लेते हैं रीवा की तीन अहम टनल्स के बारे में, कॉमन वॉटर कैरियर (सीडब्ल्यूसी) टनल का काम एक दशक पहले पूरा हो चुका है, त्योंथर और बहुती टनल का निर्माण अंतिम चरण में है…
1. कॉमन वॉटर कैरियर
पहले जानते हैं पानी के मेन सोर्स बाणसागर डैम के बारे में
7वीं शताब्दी में संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान बाणभट्ट विंध्य के शहडोल जिले के निवासी थे। 14 मई 1978 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बांध की आधारशिला बाणसागर डैम के रूप में रखी। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार सरकार ने मिलकर 28 साल बाद शहडोल जिले के देवलौंद में सोन नदी का पानी रोककर बांध बनाया। तब शहडोल, सतना, कटनी और उमरिया जिले के गांवों का भू अधिग्रहण किया गया था। 25 सितंबर 2006 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बाणसागर बांध राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
बाणसागर बांध से मध्यप्रदेश में 2,490 वर्ग किलोमीटर, उत्तरप्रदेश में 1500 वर्ग किलोमीटर और बिहार राज्य में 940 वर्ग किलोमीटर की सिंचाई की जाती है। बाणसागर बांध एक अन्तर्राज्यीय बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। यहां के पानी से 435 मेगावाट बिजली भी बनाई जाती है।
2006 के बाद नहरों का विस्तार
कॉमन वॉटर कैरियर (CWC) नहर का विस्तार साल 2006 के बाद से किया जा रहा है। 36.57 किलोमीटर की नहर से सीधे सिंचाई नहीं होती है। सीधी जिले के बघवार से 4 किलोमीटर की सुरंग बनाकर रीवा की छोर पर नहर से पानी लाया जाता है। यहां से सीडब्ल्यूसी कैनाल तीन भागों में विभाजित हो जाती है। एक कैनाल यूपी, दूसरी सीधी जिले के सिहावल और तीसरी सिलपरा तक आती है। सिलपरा में बिजली तैयार कर पानी को दो भागों में बांट दिया जाता है। एक भाग बिछिया नदी पर टीकर के पास गिरा दिया जाता है, जबकि दूसरा भाग पूर्वा मुख्य नहर बन जाती है।
रीवा के आगे बिछिया नदी का नाम बदलकर बीहर हो जाता है। यही पानी बीहर बराज में जाकर टीएसपी के लिए नहर से प्रवाहित किया जाता है। फिर 26वें किलोमीटर में टी बनाकर यानी की कट लगाकर त्योंथर कैनाल में विभाजित हो जाती है। फिर सुरंग के रास्ते फोरवे तक पानी जाता है।
घाटीनुमा पहाड़ में बनाई 5 किलोमीटर लंबी सुरंग
विंध्य की त्योंथर टनल अभी तक की सबसे बड़ी सुरंग है। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर एमएल सिंह ने बताया कि सिरमौर-गोदहा मोड़ के मध्य पडरी गांव के 26वें किलोमीटर से सुरंग शुरू होती है, जो फोरवे सिरमौर टोंस जल विद्युत परियोजना (THP) के नजदीक जाकर खत्म होती है। इसकी लंबाई 5 किलोमीटर है।
घाटीनुमा पहाड़ में सुरंग बनाना किसी चुनौती से कम नहीं था। यहां पहले से बीहर और बकिया बराज की ओपन नहर थी, लेकिन कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग के जरिए सुरंग पांच साल में तैयार की गई है। 2022 की शुरुआत में ही ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। इस नहर को बाणसागर, बीहर बराज और बकिया बराज से कनेक्ट किया गया है। सुरंग का पानी घाट से उतार कर तराई के त्योंथर और जवा आदि क्षेत्रों में पहुंचाया जा रहा है।