नर्मदा तट जिलहरीघाट पर कुशवावर्तेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। इसके निर्माण का वास्तविक काल की जानकारी तो किसी के पास नहीं है। लेकिन मंदिर के बारे में वसंत चिटणीस मालगुजार सुहजनी वाले बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 565 वर्षों से उनके संरक्षण में हैं। यह मंदिर जबलपुर में नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्थित सभी प्राचीन मंदिरों से भी प्राचीन हैं। यहां सावन में हर साल बड़ी संख्या में लोग भोले का अभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं।
महाराष्ट्र समाज देख रहा व्यवस्था : महाराष्ट्र ब्रह्मवृन्द समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि यह अत्यंत ख्याति प्राप्त मंदिर है। यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं और महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह प्रकृति की गोद में बसा अति मनोहर मंदिर है, मंदिर प्रांगण में भ्रमण की पर्याप्त व्यवस्था है और उसके सामने की ओर नर्मदा नदी का मनोरम तट इसकी सुंदरता को द्विगुणित कर देते हैं। यहां से मां नर्मदा का सौंदर्य भी आकर्षक दिखता है। यहां का वातावरण बहुत शांत है।
यह है विशेषता : यह स्वयंसिद्ध मंदिर है जहां पर प्रारंभ में एक कुंड था। जिसमें शिवलिंग के नीचे जिलहरी ही थी और इसी कारण से नर्मदा नदी के इस घाट को जिलहरी घाट के नाम से जाना जाने लगा। कालांतर में साधु संतों का अत्यधिक जमावड़ा इस कुंड के आसपास होने लगा अतएव इस कुंड को सदैव के लिए बंद करके उसी स्थान पर वर्तमान मन्दिर का निर्माण किया गया।
नर्मदा परिक्रमावासी इस मंदिर में आकर श्री कुशावर्तेश्वर महादेव की आराधना कर, चातुर्मास करते हैं। यहां प्रदोष पूजन का विशेष महत्त्व है। -नीलेश दाभोलकर, पंडित
पिछले वर्ष प्रदोष को पूजन कर भोलेनाथ की अनुभूति हुई। फिर मैने पैदल नर्मदा परिक्रमा की अभी कुश्वार्तैश्वर महादेव मंदिर में चातुर्मास कर रहा हूं। -संदीप पंराजपे, भक्त