पाकिस्‍तान पर अभी और कसेगा FATF शिकंजा! आतंकवाद को पनाह देना पड़ रहा भारी

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इस्‍लामाबाद : दुनियाभर में आतंकवाद के वित्‍त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्‍था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की 21 फरवरी से बैठक होने जा रही है। 26 फरवरी तक चलने वाली इस बैठक में फैसला लिया जाना है कि पाकिस्‍तान को इसकी ग्रे सूची में रखा जाए या नहीं। इसका निर्धारण उन शर्तों के पूरा करने के लिए पाकिस्‍तान की ओर से उठाए गए कदमों के आधार पर होगा, जिसे FATF ने तय किया था।

आतंकवाद के वित्‍त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ कार्रवाई को लेकर FATF ने पाकिस्‍तान को 27 प्रमुख बिंदुओं पर काम करने के लिए कहा था, लेकिन अक्‍टूबर 2020 तक उसने केवल 21 शर्तों को पूरा किया था। FATF ने तब उसे कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि वह फरवरी 2021 में होने वाली बैठक से पहले सभी शर्तों को पूरा कर ले। अब एक बार फिर FATF की बैठक पेरिस में होने जा रही है, जिसे लेकर पाकिस्‍तान के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। 

पाकिस्‍तान पर लटक रही FATF की तलवार

पाकिस्‍तान हलांकि अपने पक्ष में FATF के सदस्‍य देशों का समर्थन जुटाने की कोशिश में लगा है, लेकिन विशेषज्ञों का साफ कहना है कि इसकी कम ही संभावना है कि वह जून से पहले FATF की ग्रे लिस्‍ट से बाहर आए। अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या मामले में अभियुक्त आतंकी उमर सईद शेख सहित चार लोगों को रिहा करने के पाकिस्‍तानी अदालत के आदेश का असर भी इस पर हो सकता है, जिसके लिए अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी पहले ही पाकिस्‍तान को धिक्‍कार चुका है। पेरिस में FATF की पूर्ण और कार्यकारी समूह की बैठकें 21 से 26 फरवरी के बीच होनी हैं, जिनमें ‘ग्रे’ सूची में पाकिस्तान की स्थिति पर फैसला होने की पूरी संभावना है। पाकिस्‍तान को जून 2018 में FATF की ‘ग्रे’ सूची में रखा गया था, जिसकी वजह वैश्विक चरमपंथ फैलाने वाले आतंकी संगठनों को बिना रोक-टोक मिलने वाली फंडिंग बताई गई। पिछले लगातार दो साल से FATF की ग्रे सूची में रहना पाकिस्‍तान को आर्थिक तौर पर बुरी तरह से परेशान कर रहा है।

ऐसे असर डाल रहा ग्रे लिस्‍ट में होना

FATF की ग्रे लिस्‍ट में होने के कारण उसे मिलने वाले विदेशी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। साथ ही आयात, निर्यात और IMF तथा ADB जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेने की उसकी क्षमता भी प्रभावित हो रही है। यह ई-कॉमर्स और डिजिटल फाइनेंसिंग के लिए भी एक गंभीर बाधा है। यही वजह है कि पाकिस्‍तान इस लिस्‍ट से बाहर आने के लिए हर तरह के पैंतरे अपना रहा है और जगह-जगह हाथ-पांव मार रहा है।

FATF की ग्रे लिस्‍ट से बाहर आने के लिए पाकिस्‍तान को 39 में से कम से कम 12 सदस्यों के समर्थन की आवश्‍यकता है, जो फिलहाल उसे मिलती नजर नहीं आ रही है। भारत और इसके सहयोगी देश आतंकवाद को होने वाली फंडिंग के मसले को उठाते हुए पाकिस्‍तान को ‘ब्‍लैक लिस्‍ट’ यानी काली सूची में रखने की मांग भी करते रहे हैं, जो पाकिस्‍तान की मुश्किलें बढ़ा सकता है। अक्‍टूबर में जब पाकिस्‍तान को FATF की ग्रे सूची में रखने का फैसला किया गया था, जब भी भारत ने मजबूती से इस बात को रखा था कि पाकिस्तान 21 बिंदुओं पर एक्शन के दावे तो करता है, लेकिन उसकी जमीन पर बिना किसी रोक टोक के आतंकियां गतिवधियां संचालित हो रही हैं। मसूद अजहर, हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर वह अक्‍सर कन्नी काट जाता है।

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