बगैर निरीक्षण दे दी नर्सिंग कालेजों को मान्यता!

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प्रदेश में साल 2019-20 में जिन कालेजों को मान्यता दी गई थी उनका निरीक्षण ही नहीं हुआ था। इसकी वजह चिकित्सा शिक्षा विभाग और नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल द्वारा निरीक्षण के नियम नहीं बनाना है। सीबीआई ने मामले में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के निर्देश के बाद प्राथमिकी दर्ज कर 35 कालेजों की जांच शुरू कर दी है। सीबीआई की टीम सोमवार को जांच संबंधी दस्तावेजों के लिए राजधानी के 12 दफ्तर क्षेत्र स्थित काउंसिल के कार्यालय में पहुंची, लेकिन सच्चाई यह है कि कालेजों के मान्यता संबंधी जरूरी दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं हैं। दस्तावेज के नाम पर काउंसिल ने फिलहाल 2018-19 में मान्यता के लिए कालेजों द्वारा एमपी आनलाइन में अपलोड किए गए दस्तावेजों की प्रति सीबीआई को उपलब्ध कराई है। कालेजों के कुछ मूल दस्तावेज कोर्ट में जब्त हैं। निरीक्षण नहीं होने से काउंसिल के पास यह जानकारी नहीं है कि इन कालेजों में 2019-20 में कितने फैकल्टी थे। लैब थी या नहीं। भवन कितना बड़ा था। मापदंड के अनुसार दूसरे संसाधनों की जानकारी भी नहीं है। बता दें कि वर्ष 2019-20 के पहले यह नियम था कि कालेज खोलने के लिए चिकित्सा शिक्षा संचालनालय से व्यवहार्यता प्रमाण पत्र (डीएंडएफ) कालेजों को लेना होता था, जिसकी अनिवार्यता बाद में खत्म कर दी गई। इस कारण बिना मापदंड कालेज खुले। मामले के प्रकाश में आने के बाद दो रजिस्ट्रार निलंबित हो चुके हैं। 2019-20 में काउंसिल की रजिस्ट्रार चंद्रकला दिगवैया थीं। ग्वालियर क्षेत्र के नर्सिंग कालेजों को बिना मापदंड मान्यता देने के कारण करीब साल भर पहले निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद रजिस्ट्रार बनाई गईं सुनीता शिजू को हाईकोर्ट जबलपुर के निर्देश पर निलंबित किया जा चुका है। अब रजिस्ट्रार की जगह यहां प्रशासक नियुक्त किया गया है। हाईकोर्ट के निर्देश पर ग्वालियर संभाग के 200 कालेजों की जांच पिछले एक साल में की गई। इनमें 70 कालेजों को मापदंड पर खरे नहीं होने की वजह से काउंसिल ने बंद करा दिया था। सीबीआई ने जिन 35 कालेजों की जांच शुरू की है, उनमें भी 10 बंद हो चुके हैं। बाकी 25 कालेज अभी चल रहे हैं। ज्यादातर बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम चलाने वाले कालेज हैं, जहां ढाई हजार से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। मौजूदा सत्र में इन कालेजों का निरीक्षण भी कराया गया है। कुछ कालेज संचालकों ने हाईकोर्ट ग्वालियर में याचिका लगाकर कहा था कि मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा उनके यहां प्रवेशित विद्यार्थियों का नामांकन नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने जब इस मामले में पूछताछ शुरू की तो पता चला कि नर्सिंग कालेजों ने ही गड़बड़ी की है। इसके बाद कोर्ट ने मान्यता के संबंध में दस्तावेज मांगे, लेकिन निरीक्षण नहीं होने की वजह से अहम दस्तावेज ही नहीं मिले। इसके बाद मामला आगे की जांच के लिए सीबीआइ को सौंपा गया। यह बात भी सामने आ रही है कि 2019-20 में बीएससी नर्सिंग प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को जनरल प्रमोशन मिला था। ऐसे में कुछ कालेजों ने सीधे द्वितीय वर्ष में विद्यार्थियों को प्रवेश देने के लिए नामांकन करने का दबाव आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय पर बनाया था।

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