बाढ़ के वास्तविक कारणों की पहचान कर उनको खत्म करने की है जरूरत

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राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार देश का लगभग 400 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। वहीं हर साल लगभग 76 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बाढ़ आती है। इससे औसतन 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें नष्ट हो जाती हैं। आशंका है कि आने वाले वर्षो में जलवायु परिवर्तन का असर बाढ़ की विभीषिका तथा जानमाल की हानि के ग्राफ को बढ़ाएगा। विश्व बैंक के एक अध्ययन में अंदेशा जताया गया है कि 2040 तक देश के ढाई करोड़ लोग भीषण बाढ़ की चपेट में होंगे।

बिहार के ही करीब 11 जिले के 388 पंचायत इस समय बाढ़ की चपेट में हैं। इससे 15 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। देश के कुल बाढ़ प्रभावित इलाकों में से 16.5 प्रतिशत क्षेत्रफल बिहार का है और कुल बाढ़ पीड़ित आबादी में 22.1 फीसद बिहार में रहती है। पिछले 43 वर्षो में एक भी ऐसा साल नहीं गुजरा, जब बिहार में बाढ़ नहीं आई हो। इसकी वजह से प्रदेश में हर साल औसतन 200 इंसानों और 662 पशुओं की मौत होती है और सालाना तीन अरब रुपये का नुकसान होता है।

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संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई इकोनामिक लासेज, पावर्टी एंड डिजास्टर 1998-2017 के रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 वर्षो में अकेले भारत को बाढ़ के कारण 79.5 बिलियन डालर से ज्यादा का नुकसान हुआ है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ की वजह से गुजरे 64 वर्षो में 1,07,487 लोगों की जान चली गई। यानी हर साल औसतन 1,654 लोगों के अलावा 92,763 पशुओं की मौत होती रही है। विभिन्न राज्यों में आने वाली बाढ़ से सालाना औसतन 1.680 करोड़ रुपये की फसलें नष्ट हो जाती हैं और 12.40 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

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