मध्य प्रदेश के भीतर मलेरिया प्रभावित जिले के नाम पर हर वर्ष लाखों रुपए का आवंटन जिला मलेरिया विभाग और नगर पालिका को मिलता है। बावजूद इसके मलेरिया की रोकथाम के लिए जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। नगर पालिका और मलेरिया दोनों ही विभाग शहर के भीतर मलेरिया के प्रकोप बढ़ने के बाद उसका लारवा खत्म करने और सावधानी बरतने के लिए अभियान चलाने की बात करते नजर आ रहे हैं।
मलेरिया विभाग द्वारा हर वर्ष की तरह इस बार भी बारिश की शुरुआत होते ही ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए मच्छरदानी सहित अन्य योजना शुरू किए जाने की जानकारी दी जाने लगी। लेकिन शहर के भीतर ऐसी कोई योजना ऐसा कोई प्लान मलेरिया विभाग का नही है और ना ही नगरपालिका का दिखाई दे रहा है।
इस बात की जानकारी स्वयं नगर पालिका सफाई विभाग के जिम्मेदार देते है कि अभी तक शहर के भीतर मलेरिया के मरीज अधिक मात्रा में नहीं मिले हैं इसलिए अभियान शुरू नहीं किया गया है।
जिले के भीतर मलेरिया के आंकड़ों पर यदि ध्यान दिया जाए तो वर्ष 2017 में मलेरिया अपना प्रचंड रूप दिखा रहा था। इस वर्ष सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1407 मलेरिया पॉजिटिव मरीज मिले। उसके बाद निश्चित ही वर्ष 2018 और 2019 में मलेरिया थोड़ा थमा हुआ दिखाई दिया। वर्ष 2018 में 324 और 2019 में 156 पॉजिटिव मरीज मिले।
लेकिन कोरोना संक्रमण काल के दौरान वर्ष 2020 में मलेरिया ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1 वर्ष में 2794 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव मिली। इस बात यह लगा कि वर्ष 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मलेरिया विभाग और नगर पालिका शहर के भीतर भी मलेरिया के लिए बेहतर काम किया जाएगा। लेकिन जून माह के मध्य में मानसून की बारिश शुरु हुई जगह-जगह पानी भरा होने लगा लोग कूलर और आसपास के गड्ढों में पानी भरने के प्रति लापरवाह होते गए। बावजूद इसके शहरी क्षेत्र में मलेरिया के लिए कोई अभियान नहीं चलाया गया।