पिछले 2 साल से सत्ता के निचले प्रतिष्ठानों में जनप्रतिनिधियों की भूमिका गायब हो गई है। और अधिकार प्रशासकों के हाथों में सीमित हो गए है। नगरी निकाय और ग्राम पंचायत, जनपद, जिला पंचायत के चुनाव लगातार टलने की वजह से जन समस्याएं हल नहीं हो पा रही है और ना ही अधिकारी विकास कार्यों में रुचि दिखा रहे है। स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं होने के विषय पर जब हमने जनप्रतिनिधि से चर्चा की तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से बड़ी बेबाकी से चुनाव होने की बात कही गई। लेकिन विपक्ष के तीखे तेवर को देखकर सरकार के बचाव में आते हुए कहते हैं कि कोरोना काल होने की वजह से स्थानीय निकाय के चुनाव लगातार टलते जा रहे हैं। स्थानीय निकाय चुनाव पर एक नजर डाली जाए तो जिले की बालाघाट, वारासिवनी और मलाजखंड नगरपालिका के साथ ही कटंगी नगर पंचायत में चुनाव कराए जाने हैं सभी चारों स्थान पर पार्षद और अध्यक्ष के कार्यकाल जनवरी 2020 में समाप्त हो चुका है। इसी तरह जिले के 10 जनपद और जिला पंचायत के साथ परिसीमन के बाद 722 ग्राम पंचायतों में चुनाव करवाए जाने थे। हालांकि प्रदेश शासन में ग्राम स्तर की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए सरपंचों का नाम बदलकर प्रधान कर दिया लेकिन पंचायत के पंचों के अधिकार सीमित होने के साथ ही कुछ योजनाओं का संचालन करना मुश्किल हो गया।
कोरोना महामारी से टले चुनाव-रेखा बिसेन
इस विषय पर जब हमने सबसे पहले जिला सरकार में दो बार मुखिया रही जिला पंचायत की निवर्तमान अध्यक्ष वर्तमान जिला पंचायत प्रधान रेखा बिसेन से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि पंचायत स्तर पर मनरेगा सहित अन्य योजना के माध्यम से विकास कार्य तो हो रहे हैं। लेकिन जब उनसे शहरी क्षेत्र की चर्चा की गई तो उन्होंने कोरोना महामारी का हवाला देते हुए कहा कि बजट की कमी की वजह से विकास कार्य प्रभावित हुए हैं। वही चुनाव नही होने की वजह भी कोरोना को मानती है।
जनता पार्षद-अध्यक्ष से जुड़ी रहती-अनिल धुवारे
नगर पालिका बालाघाट के निवर्तमान अध्यक्ष अनिल धुवारे दो टूक शब्दों में कहते हैं कि नगर पालिका के चुनाव हो जाते तो जनता सीधे पार्षद और अध्यक्ष से जुड़ी रहती लेकिन चुनाव नहीं होने की वजह से प्रशासकों के हाथों में नपा की कमान है हर कोई अधिकारियों तक नहीं पहुंच पाता। निवर्तमान अध्यक्ष श्री धुवारे तो सीधे शब्दों में यह भी कहते हैं की शहर का विकास कार्य पूरी तरह से रुक गया है। उनके बताया कि उनके कार्यकाल के दौरान जिन कार्यों का उन्होंने भूमि पूजन किया था विधायक गौरीशंकर बिसेन द्वारा अपनी निधि से वही काम पूरे करवाए जा रहे हैं। वे मानते है कि छोटे-छोटे काम नहीं होने की वजह से जनता का आक्रोश जनप्रतिनिधियों के प्रति बढ़ रहा है।
जनप्रतिनिधियों में आक्रोश-शेषराम राहंगडाले
जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष शेषराम राहंगडाले प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लेते है। बताते हैं कि मनरेगा के काम तो करवाए गए लेकिन भुगतान की परेशानी किसी से छुपी नहीं है। जिसको लेकर जनता जनप्रतिनिधियों से आक्रोशित है। गांव से लेकर जिला मुख्यालय में बारिश के दौरान जलभराव की परेशानी पर श्री राहंगडाले कहते हैं कि एक बारिश में शहर का हनुमान चौक तालाब बन जाता है तो फिर ग्रामीण क्षेत्रों के क्या हालात होंगे यह अनुमान लगाया जा सकता है।
नौकरशाही हावी हो गई है-अनुभा मुंजारे
नगर पालिका बालाघाट में अब तक सबसे अधिक बार अध्यक्ष रह चुकी शहर की जनता और उनकी समस्याओं की बारीकी से जानकारी रखने वाली अनुभा मुंजारे कहती हैं कि स्थानीय निकायों में प्रशासकों की वजह से अव्यवस्थाओं का बोलबाला है और नौकरशाही बहुत अधिक हावी हो चुकी है। चुनाव में चुना हुआ निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होता है। वे इन्ही अधिकारियों से तालमेल बिठाकर जनता के हित के काम करवाते है। श्रीमती मुंजारे बताती है कि आखिरकार स्थानीय स्तर के चुनाव क्यों नहीं करवाए जा रहे हैं यह सवाल जनप्रतिनिधि के साथ ही आम नागरिकों के मन में भी बार-बार उठ रहे हैं। चुनाव के मुद्दे पर शासन पूरी तरह से निरंकुश दिखाई दे रहा है। पूरे देश में चुनाव हो रहे हैं बीते दिनों उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव करवाए गए तो फिर मध्यप्रदेश में चुनाव क्यो नही हो सकते।
तकनीकी कारणों पर दो ध्यान-शफकत खान
वर्षों से लगातार बालाघाट नगर पालिका के लिए निर्वाचित होते आ रहे वरिष्ठ पार्षद शफकत खान चुनाव नहीं करवाए जाने के तकनीकी कारणों को बड़ी बारीकी से बताते हैं। जिसमें यह स्पष्ट दिखाई देता है सरकार के इस दांव पेच में चुनाव करवा पाना वर्तमान समय में बेहद कठिन है। श्री खान बताते है कि नगरपालिका के अध्यक्ष आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में जो निर्देश जारी किया है सरकार को उसमे जवाब उसका पेश करना है। उसका जवाब अब तक नहीं दिया गया है। इसी तरह कमलनाथ सरकार द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव करवाए जाने को लेकर। पार्षदों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने का फैसला लिया था। भारतीय जनता पार्टी ने उसका विरोध किया वर्तमान समय में उसका संशोधन किया जाना है, जो विधानसभा में होगा और विधानसभा शुरू होने के अभी आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं। श्री खान तो यह भी कहते हैं कि यह कहना गलत है की प्रशासक काम नहीं करते जनता अपनी आवाज उठाएं और प्रशासक तक पहुंच जाए तो काम जरूर होंगे।
जनप्रतिनिधि अधिकार विहीन-विशाल
जिला कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता विशाल बिसेन भी स्थानीय निकाय चुनाव नहीं करने का आरोप मध्य प्रदेश शासन पर लगाते हुए कहते हैं कि चुनाव नहीं होने से जनप्रतिनिधि अधिकार विहीन हो गए हैं जिससे जनता के सरोकार कार्य के काम नहीं हो पा रहे हैं। जनप्रतिनिधि नहीं होने से उनकी राशि भी नहीं मिल पा रही है जिससे विकास के और भी कार्य प्रभावित हो रहे हैं। पार्षद और सरपंच, जनपद सदस्य के निचले स्तर के विकास कार्य की अहम कड़ी है। यह अहम कड़ी सक्रिय होकर काम करे यह बिना चुनाव के संभव नहीं है।
निश्चित ही मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थानीय स्तर के चुनाव नहीं करवाए जाने से जनप्रतिनिधियों की पूछ परख तो कम हुई है साथ में सरकारी तंत्र का बोल बाला भी बढ़ा है। विपक्ष में बैठे जनप्रतिनिधि इस मामले पर सरकार को जमकर आड़े हाथों लेते हैं पक्ष में बैठे जनप्रतिनिधियों की मजबूरी है कि वे सरकार के खिलाफ ना जाए।
वही इस पूरे मामले पर गौर करे तो कोरोना संक्रमण महामारी की संभावित तीसरी लहर, विधानसभा का सत्र नहीं बुलाया जाना सहित अन्य दांव पेच के बीच वर्ष 2021 में भी स्थानीय स्तर नगरी निकाय और ग्राम पंचायत के चुनाव करवा पाना संभव होता दिखाई नही देता?