बिरसा ब्रिगेड द्वारा मनाया गया रॉबिनहुड टंट्या भील का 133 वा शहादत दिवस

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देश के आदिवासी जननायक रॉबिनहुड टंटया भील जी का बिरसा ब्रिगेड द्वारा 133 वा शहादत दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जहां विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए गए। ग्राम पंचायत धनसुआ के ग्राम ओदा में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान ग्राम ओदा में स्थापित रॉबिनहुड टंटया भील जी की आदम कद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनकी शहादत दिवस को नमन किया गया। जिसके बाद उद्बोधन कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जहां उपस्थित वरिष्ठ पदाधिकारियों ने रॉबिनहुड टंट्या भील की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनके बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। आयोजित कार्यक्रम के दौरान बिरसा ब्रिगेड जिला संरक्षक रमेश कुमार टेकाम ,जिला सह संरक्षक उदयसिंह मर्सकोले, जिला प्रभारी गोविंद प्रसाद उईके, अर्पित सेवा संस्था बालाघाट के अध्यक्ष वसंत वागदे, प्रभुदयाल उईके बिरसा ब्रिगेड कोषाध्यक्ष बालाघाट, सत्येन्द्र इनवाती बिरसा ब्रिगेड यूवा जिलाध्यक्ष बालाघाट, अध्यक्ष आदिवासी सामाजिक सांस्कृतिक ग्रामसभा ओदा रमेश वरकड़े, ग्रामसभा सचिव निरंजन मड़ावी, श्रीमति चन्द्र किरण उईके बिरसा ब्रिगेड सदस्य, संतोषी उईके बिरसा ब्रिगेड,अशोक कोर्राम बिरसा ब्रिगेड, सालिकराम उईके बिरसा ब्रिगेड, डी. एल. उईके बिरसा ब्रिगेड,सुरेंद्र मसराम बिरसा ब्रिगेड, आईपीएफ महिला मंडल अध्यक्ष रमा टेकाम, सरिता मड़ावी समाजसेवी, एवं सभी ग्राम के सदस्य व बिरसा ब्रिगेड के गण मान्य लोग उपस्थित हुए।

जल जंगल जमीन के लिए 45 वर्षो तक किया संघर्ष
आयोजित इस उद्बोधन कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बताया गया कि टंटया भील का जीवन आदिवासी समाज मे सबसे लोकप्रिय रहा। इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के समय 45 वर्ष तक जल जंगल जमीन के लिए अंग्रेजों से हथियारबंद लड़ाई लड़े। इनके आंदोलन के कारण 1850 का हेरीडेटरी एक्ट बना जिसके कारण आज मध्यप्रदेश में आदिवासियों को सरकारी नौकरी मिल रही है। इनका जीवन जमीदार व्यवस्था को खत्म कर उनके द्वारा छीनी गई आदिवासी भूमियों को उनको वापस लौटाया ये वो वीर थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। ये सिर्फ आदिवासियों के हक अधिकारों के लिए ही नही लड़े बल्कि इन्होंने इस देश मे निवास करने वाले मूलनिवासियो को भी अधिकार दिलाया।

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