बोध कथा:किसने किसकी मदद की?

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पति, पत्नी और उनके दो प्यारे-प्यारे बच्चे। वह एक ख़ुशहाल परिवार था। एक बार पति-पत्नी को ज़रूरी काम के चलते शहर से बाहर जाना था। काम कुछ ऐसा था कि वे बच्चों को साथ नहीं ले जा सकते थे, इसलिए उन्होंने बच्चों को घर पर ही आया के भरोसे छोड़ दिया।

फिर हुआ यूं कि उनका काम जल्दी निबट गया, तो वे अपनी कार में घर की ओर चल पड़े। वे बातें कर रहे थे कि बच्चे उन्हें जल्दी आया देख कितने ख़ुश होंगे। तभी उन्हें आसमान में उठता धुआं दिखा। जब वे घर के कुछ पास पहुंचे, तो देखा कि मोहल्ले में कुछ दूर रहने वाले उनके एक पड़ोसी के घर आग लगी हुई थी। पति जल्दी अपने घर पहुंचना चाहता था, लेकिन पत्नी ने कहा कि पहले देखें तो पड़ोसी के घर क्या स्थिति है। आख़िरकार दोनों कार से उतरकर जलते घर की ओर चल दिए।

वहां बाहर लॉन में एक महिला बदहवास-सी हालत में चीख़ रही थी ‘कोई भीतर जाकर मेरे बच्चों को बचा लो।’ उसकी हालत देखकर पति को बड़ी दया आई। उसने अपने कपड़ों को पानी में भिगोया और मुंह पर गीला रूमाल बांधकर घर के अंदर दौड़ पड़ा। घबराई पत्नी ने उसे रोकना चाहा, पर वह नहीं रुका। अंदर पहुंचकर उसने पाया कि बैठक कक्ष में दो बच्चे डरे-सहमे दुबके थे। उसने दोनों को उठाकर सीधे दौड़ लगा दी और बाहर आकर ही दम लिया।

पड़ोसी महिला को उसके बच्चे सौंपते हुए उसने पूछा कि क्या भीतर कोई और भी है, क्योंकि उसने कुछ और आवाज़ें भी सुनी थीं। महिला से पहले ही उसके बच्चे घबराए हुए चिल्ला पड़े कि उनके दो दोस्त और हैं, जो उनके साथ छुपन-छुपाई खेल रहे थे और ऊपर गए थे। अब वह आदमी एक बार फिर वहां जाने की तैयारी करने लगा। इस बार उसकी पत्नी के साथ ही अन्य लोगों ने भी रोका, परंतु वह जलते घर की ओर दौड़ पड़ा।

ऊपर के कमरे में आग पहुंची नहीं थी, लेकिन धुआं भरा था। वह बमुश्किल बच्चों तक पहुंचा और उन्हें उठाकर सीढ़ियां उतरने लगा। दोनों बच्चे उसके एक-एक कांधे पर थे। अचानक उसे लगा कि बच्चों का स्पर्श जाना-पहचाना है। बाहर आकर उसने बच्चों को कांधे से उतारा, तो उसकी पत्नी चीख़ मारकर रो पड़ी। पति की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे। ये उसी के बच्चे थे। दरअसल, बच्चों की देखभाल करने वाली आया दोनों बच्चों को पड़ोसी के यहां छोड़कर कुछ देर के लिए सहेली के साथ बाज़ार चली गई थी और उस बीच अग्निकांड हो गया था।

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