लोकसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लगते ही चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है। अब चुनावी दल लोकसभा क्षेत्र के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरने लगेंगे, लेकिन देश का भविष्य गढ़ने वाले स्कूली शिक्षा की बेहतरी को लेकर लोकसभा चुनाव में आज तक किसी दल ने मुद्दा नहीं उठाया। न ही अपने घोषणा पत्र में इसका जिक्र किया। दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में स्कूली शिक्षा को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया था।
राज्य सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपये का बजट स्कूली शिक्षा में खर्च किया जाता है। पहले उत्कृष्ट, माडल और अब सीएम राइस स्कूल शुरू किए जा रहे है, लेकिन अधिकांश स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं। कहीं-कहीं तो अब तक नए भवन का निर्माण तक नहीं हुआ है। ग्रामीण अंचलों में अतिथि शिक्षकों के भरोसे कई स्कूल चल रहे हैं। स्कूलों में लिपिक, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं हैं।मप्र शिक्षा के मामले में अन्य प्रदेशों की स्थिति में काफी पीछे चल रहा है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विद्यार्थियों की सुविधाओं, शिक्षकों की प्रोफेशनल ट्रेनिंग आदि को लेकर कभी बात नहीं होती है। दिल्ली और पंजाब में राजनीतिक दलों ने शिक्षा को ही चुनावी मुद्दों का बनाया और वर्तमान में शिक्षा प्रणाली और स्कूलों को बेहतर किया। बावजूद मप्र में लोकसभा चुनाव में स्कूली शिक्षा कभी मुद्दा नहीं रहा है।
जमीन स्तर पर ध्यान दे जनप्रतिनिधिसेवानिवृत्त प्राचार्य और पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी रजनी जादौन ने बताया कि सरकार ने जो नई शिक्षा नीति बनाई है, उस पर बेहतर काम हो रहा है। शिक्षा नीति के परिणाम आगामी पांच वर्ष में सामने आएंगे। लोकसभा चुनाव में स्कूली शिक्षा के मुद्दे भी होना चाहिए। स्कूली शिक्षा से होकर भी हमारे देश के भविष्य की राह निकलती है। इसलिए जनप्रतिनिधियों को स्कूली शिक्षा से जुड़ी योजनाओं को लेकर जमीनी स्तर पर काम करना होगा।