नाटो का कहना है कि अगर पुतिन शांति की बात नहीं सुनते हैं, तो इन देशों को आर्थिक रूप से मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने ये भी साफ किया कि NATO रूस पर दबाव बनाने के लिए हर संभव कोशिश करेगा। जानते हैं भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं है?
नई दिल्ली: नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) के महासचिव मार्क रुट ने भारत, ब्राजील और चीन को खुली धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर ये देश रूस के साथ व्यापार करना जारी रखते हैं, तो उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। अमेरिकी सीनेटरों से मिलने के बाद रुट ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि उन्होंने बीजिंग, दिल्ली और ब्रासीलिया के नेताओं से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर शांति वार्ता को गंभीरता से लेने का दबाव डालने को कहा है। रुट ने सीधे शब्दों में कहा-अगर आप चीन के राष्ट्रपति हैं, भारत के प्रधानमंत्री हैं या ब्राजील के राष्ट्रपति हैं और आप रूस के साथ व्यापार करना और उनका तेल और गैस खरीदना जारी रखते हैं, तो आपको यह पता होना चाहिए। अगर मॉस्को में बैठे व्यक्ति ने शांति वार्ता को गंभीरता से नहीं लिया, तो मैं 100% सेकंडरी सैंक्शन लगाऊंगा। इसका मतलब है कि रूस से व्यापार करने वाले देशों पर भी पाबंदी लगाई जा सकती है। नाटो महासचिव की यह भाषा शायद ही किसी को बर्दाश्त हो। जानते हैं भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं है?
कब हुआ था नाटो का गठन, जानिए
The Office of the Historian के अनुसार, साल 1949 की बात है, जब 4 अप्रैल को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस सहित 12 देशों ने मिलकर नाटो का गठन किया था। अमेरिका की अगुवाई में इसकी स्थापना संधि पर वॉशिंगटन डीसी के मेलन ऑडिटोरियम में हस्ताक्षर किए गए थे। इसका मकसद तत्कालीन सोवियत संघ की बढ़ती ताकत यानी यूरोप में विस्तार को रोकना था। नाटो की संधि में यह बात कही गई थी कि अगर इसके सदस्य देशों में किसी पर हमला होता है तो नाटो के सभी मेंबरों पर हमला माना जाएगा। ऐसे में नाटो देश उस दुश्मन के खिलाफ हमला बोल देंगे।
नाटो के पास अपनी कोई सेना नहीं
नाटो के पास अपनी कोई सेना नहीं है, लेकिन सदस्य देश संकट की स्थिति में सामूहिक सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं। यानी ये सदस्य देश मिलकर एक-दूसरे की मदद करते हैं। सरल लहजे में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि नाटो के सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना इसका लक्ष्य है। दरअसल, इसका गठन अमेरिका ने अपने हित साधने के लिए किया था।
नाटो में अभी 32 देश, न भारत न पाकिस्तान
The Office of the Historian के मुताबिक, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में नाटो के 32 सदस्य हैं, जिनमें ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और तुर्की शामिल हैं। अंतिम देश जो नाटो का हिस्सा बने वो फिनलैंड और स्वीडन हैं। फिलहाल, यूक्रेन, बोस्निया और हर्जेगोविना तथा जॉर्जिया अभी नाटो में शामिल होने के इंतजार में हैं। हालांकि, नाटो देशों ने यूक्रेन को हथियार दिए ताकि वो रूस को जवाब दे सके। इसमें भारत या पाकिस्तान जैसे देश शामिल नहीं हैं।
क्या नाटो का कभी सदस्य देश रहा है भारत
नहीं। भारत नाटो का सदस्य नहीं है। आजादी के बाद से ही भारत ने खुद को खेमेबाजी से दूर रखने का फैसला किया था। शीतयुद्ध के दौरान भी भारत गुटनिरपेक्ष देशों में शामिल हो गया था, जो पूर्व सोवियत संघ या अमेरिका के गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे। भारत की अगुवाई में ही गुट निरपेक्ष आंदोलन शुरू हुआ। भारत कभी नाटो का सदस्य देश नहीं बनना चाहता था।
नाटो प्लस में क्यों शामिल करना चाहता था अमेरिका
सालभर पहले भारत को नाटो प्लस का हिस्सा बनाने के लिए अमेरिकी संसद की सेलेक्ट कमेटी ने सिफारिश की थी, लेकिन भारत ने अपना रुख साफ कर दिया था। उस वक्त विदेश मंत्री जयशंकर ने भी साफ किया था कि भारत नाटो प्लस का दर्जा पाने के लिए उत्सुक नहीं है। भारत ने इसलिए भी अपना रुख साफ किया था क्योंकि देश किसी भी चुनौती से निपटने में सक्षम है। ऐसे में अगर भारत नाटो प्लस का सदस्य बनता है तो उस पर अमेरिकी खेमे का ठप्पा लग सकता है। इसके अलावा, अमेरिका की पाकिस्तान से दोस्ती की वजह स भी भारत ऐसे किसी खेमे से दूर रहना चाहता है।
भारत ने संप्रभुता को हमेशा से दी है तवज्जो
भारत ने अपनी समेत दुनिया के हर देश की संप्रभुता का सम्मान किया है। यहां तक कि वह दुश्मन देश की संप्रभुता का भी सम्मान करता है। उसकी कभी आक्रामक या साम्राज्यवादी नीति नहीं रही है। भारत चाहता है कि वह अंतरराष्ट्रीय मामलों में फैसले लेने में एकदम स्वतंत्र हो। उस पर किसी का कोई दबाव नहीं हो। भारत ने हमेशा से रणनीतिक आजादी को अहमियत दी है। भारत की विदेश और रक्षा नीति हमेशा से ही स्वतंत्र रही है।