बीते कुछ दिनों से सेमीकंडक्टर (Semiconductor), चिप (Chip) की चर्चा जोर-सोर से हो रही है। टीवी चैनलों पर, अखबारों में, सोशल मीडिया पर आपने भी इस सेमीकंडक्टर के बारे में पढ़ा, देखा होगा। भारत के चिप मिशन (Chip Mission) को लेकर दुनियाभर के देशों में उत्सुकता है। अमेरिका,जापान, ताइवान की कंपनियां भारत का रूख कर रही है। किसी भी देश के लिए छोटी सी चिप कितना मायने रखती है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दुनियाभर की सरकारें इसे बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं। भारत के इस चिप मिशन से चीन (China) में खलबली मची है। भारत के सेमीकंडक्टर मिशन (Semiconductor Mission) ने चीन की बेचैनी बढ़ा दी है। चीन भारत के इस मिशन में मुश्किलें खड़ा कर रहा है।
चीन को सेमीकंडक्टर मैन्चुफैक्चरिंग का महाराजा माना जाता है। दुनिया में सेमीकंडक्टर की कुल बिक्री में चीन का एक तिहाई योगदान है। अमेरिका समेत दुनियाभर के देश सेमीकंडकटर के लिए चीन और ताइवान पर निर्सेभर हैं। भले ही सेमीकंडक्टर का साइज छोटा हो, लेकिन इसका कारोबार बहुत बड़ा है। इस चिप मार्केट का साइज 500 अरब डॉलर से अधिक का है और अगले सात सालों में यह बाजार दोगुना हो जाएगा। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक चीन सेमीकंडक्टर के डिजाइन और मैन्यूफैक्चरिंग में भले ही ताइवान से पीछे हो, लेकिन चिप वाली डिवाइसेज के प्रोडक्शन में चीन की हिस्सेदारी 35 फीसदी है। ताइवान दुनिया के लिए सेमीकंडक्टर का हब है। सेमीकंडक्टर मार्केट शेयर का 63 प्रतिशत हिस्सा ताइवान का है।