खंडवा लोकसभा सहित जोबट, रैगांव व पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव की जंग निर्णायक दौर में है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ आमने-सामने हैं तो भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों को भी मैदान में उतार दिया है। भाजपा मोदी और शिवराज सरकार की उपलब्धियों के बहाने चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है तो कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों पर उसे घेर रखा है।
बड़वाह विधायक सचिन बिरला के पाला बदलकर भाजपा में जाने के बाद दोनों दलों में मतदान की जमावट पर भी कसरत तेज हो गई है। आदिवासी क्षेत्रों में मजबूत पैठ बना चुका संगठन जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) भी निश्चित रूप से चुनौती बन रहा है। मुख्यमंत्री सभा और रोड शो के बाद आदिवासी या पिछड़े वर्ग के लोगों के यहां भोजन और रात्रि विश्राम कर रहे हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी आदिवासी समुदाय के साथ झूमते दिख रहे हैं। सिंधिया मराठी बहुल क्षेत्रों में मराठी भाषा में भाषण देकर जनता को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री मोर्चे पर
उपचुनाव में केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और फग्गन सिंह कुलस्ते खंडवा लोकसभा सीट के अलावा विधानसभा क्षेत्रों में भी वे लगातार सभाएं और जनसंपर्क कर रहे हैं। जातिगत समीकरणों को साधने के लिए उप्र के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को रैगांव बुलाया गया तो पृथ्वीपुर में उन सवर्ण नेताओं का जमावड़ा देखने को मिल रहा है, जिनकी रिश्तेदारी वहां है। मप्र के मंत्रियों व संगठन पदाधिकारियों को भी जातिगत समीकरणों के आधार पर क्षेत्रों में भेजा गया है। पार्टी को अक्सर बयानों से असहज कर देने वाली पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी मैदान में मोर्चे पर हैं।
जैकलिन के लिए ही समय था
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावी सभाओं में कांग्रेस और कमल नाथ पर खासे आक्रामक हैं। वह कहते हैं कि कमल नाथ के पास फिल्म अभिनेत्री जैकलिन और सलमान खान के लिए ही समय था। मंत्री, विधायक या जनता मिलना चाहे तो कमल नाथ के पास समय ही नहीं होता था।
व्यक्तिगत संपर्क पर कांग्रेस का जोर
उधर, कांग्रेस बड़ी सभा और रोड शो से ज्यादा जोर व्यक्तिगत संपर्क पर दे रही है। इसमें पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता लोगों का ध्यान महंगाई कानून व्यवस्था और बेरोजगारी की ओर खींच रहे हैं। ऐसे में मुकाबला उपचुनाव बराबरी का होता दिख रहा है। हालांकि मतदाताओं का मौन भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता बढ़ा रहा है। महंगाई का मुद्दा भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है, जबकि परिवारवाद से कन्नी काटने का संदेश पार्टी पहले ही दे चुकी है। उपचुनाव में परिवारवाद से हटकर भाजपा ने टिकट दिए हैं। ऐसे में मामूली सुस्ती भी दमोह के परिणाम की याद दिला देती है।