उज्जैन। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में शैवदर्शन का शोध केंद्र स्थापित होना चाहिए। संत डा.अवधेशपुरीजी महाराज ने संघ प्रमुख डा.मोहन भागवत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग नई दिल्ली को पत्र लिखकर मंदिर के समीप वर्तमान में चल रही खोदाई व प्राप्त पुरासंपदा के संबंध में पांच सूत्रीय सुझाव दिए हैं।
संतश्री ने कहा कि उज्जैन का प्राचीन नाम प्रतिकल्पा है। यह सृष्टि के आरंभ से स्थापित प्राचीनतम नगर है। उज्जैन की धार्मिक सांस्कृतिक विरासत को अत्याधुनिक तकनीक से निकालकर उस पर शोध कार्य होना चाहिए। नगर में अब तक तीन बार पुरातात्विक उत्खनन हो चुका है। सन् 1938-39, सन् 1955 व 58 तथा सन् 1964 व 65 में खोदाई कार्य किया गया था। लेकिन वर्तमान में पुरासंपदा का जो भंडार व हजारों वर्ष पुराने मंदिर का भाग निकलना अपने आप में अद्वितीय है। मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग की निगरानी में की जा रही इस खोदाई ने इस नगर के प्राचीन इतिहास की खोज को एक नई दिशा दी है। इसकी सार्थकता सिद्ध करने एवं भविष्य में श्रेष्ठ उत्खनन के लिए यह पांच सुझाव महत्व पूर्ण साबित होंगे।
पत्र में यह सुझाव दिए
-कोटली के विष्णु मंदिर व ओडिशा के रानीपुरझारिया मंदिर की तर्ज पर महाकाल मंदिर को भी राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया जाए।
-पुरातात्विक उत्खनन का शेष कार्य अत्याधुनिक तकनीक से जांच कराकर विज्ञानी तकनीक से किया जाना चाहिए।
-खोदाई में निकले हजारों वर्ष पुराने मंदिर के ढांचे के स्थान पर शोध मंदिर का निर्माण होना चाहिए।
-इसके समीप म्युजियम बनाकर निकाली गई पुरासंपदा को संरक्षित किया जाना अत्यंत आवश्यक है
-पुरासंपदा एवं शैवदर्शन पर शोध के लिए उच्च शिक्षित संतों के मार्ग दर्शन में शोध समिति का गठन किया जाना चाहिए।