इंदौर वह शहर है, जिसने देश-दुनिया को उस्ताद अमीर खां और लता मंगेशकर जैसे संगीत के दिग्गज दिए, वहीं चित्रकला के क्षेत्र में एमएफ हुसैन, एनएस बेंद्रे, डीजे जोशी जैसे सिद्घ हस्त भी दिए। चित्रकला के क्षेत्र में जितने पुरस्कार इंदौर के डीजे जोशी ने प्राप्त किए, शायद देश में किसी और कलाकार ने नहीं किए। ऐसा है इंदौर का पानी।
मुझे याद है, वह 1976 का साल था, जब मैं पहली बार इंदौर आया था। शहर में पहला दिन और मेरे पास ठहरने की कोई जगह नहीं। तब भी इस शहर ने मुझे अपनी गोद में बैठाया। तब मुझे नौलखा स्थित विसर्जन आश्रम में ठहरने का सौभाग्य मिला था। उस दिन शहर में 24 घंटे तक सतत बारिश हुई थी। भीगते शहर की देह में ठंडक थी, मगर इसने मुझे अपनी गोद में बैठाकर स्नेह की उष्मा दी थी। उस दिन इतनी बारिश हुई थी कि पानी सड़क पर नहीं समाया और उस कमरे तक आ गया, जिसमें मैं ठहरा था। इस शहर से वह पहली मुलाकात अब तलक जेहन में जिंदा है। इस शहर ने जो भी रंग दिखाया, उसे मैंने मन से देखा।
बात अगर चित्रकला की करें, तो जब मैं यहां आया था, तब यहां चित्रकला के लिए केवल शासकीय ललित कला संस्थान ही था। आज कई निजी शैक्षणिक संस्थान हैं, जो कला की बारीकियां सिखा रहे हैं। उस वक्त कला प्रदर्शनी के लिए भी केवल देवलालीकर कला वीथिका ही थी, जिसमें भी न तो प्रकाश की समुचित व्यवस्था थी और ना ही वर्षों तक सुधार कार्य हुआ। हालांकि आज भी शहर को आला दर्जे की एक आर्ट गैलरी की आवश्यकता है।
एक बात अखरती है कि इंदौर में कलाकृतियों को खरीदने के प्रति संवेदना नगण्य है। जिस शहर ने नामी कलाकार दिए, वहां ऐसा केंद्र खुले जहां नामी कलाकारों की कृतियों को हमेशा के लिए प्रदर्शित किया जा सके और हर कलाकार के लिए पृथक-पृथक हाल हो। साथ ही प्रदेश शासन इंदौर में किसी ऐसे पुरस्कार की शुरुआत करे, जिसका स्तर देशभर में सबसे ऊपर हो। इससे कलाकार सतत सृजन के लिए प्रोत्साहित होंगे। इंदौर में यह सब किए जाने की क्षमता है, बस जरूरत है तो हम सबके आगे आने की।
मेरे मन की याद गली – इंदौर की जमीं ने मुझे कई मधुर स्मृतियां दीं। मेरे मन की याद गली में ऐसा ही एक किस्सा बसा हुआ है। वह 1996 का साल था। तब पहली बार मेरे साथ इंदौर से श्रेणिक जैन, मनोहर गोदने, विष्णु चिंचालकर, हरेंद्र शाह, अब्दुल कादिर, अखिलेश वर्मा, चंदनसिंह भट्टी, शशिकांत मुंडी, देवीलाल पाटीदार, प्रभु जोशी सहित 22 कलाकारों की कृतियां मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हुई थीं। वहां हम सबकी एक-एक कृति बिकी। तब लौटकर हम मानो इंदौर के गले से लिपट गए थे।